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जैनसम्पदामशिक्षा ||
७- तमाखू को नहीं सूषना चाहिये, यदि कयाचित् नकसीर रोग के बन्द करने के लिये या कफ और नवसे के निकालने के लिये उस के सूमने की आवश्यकता हो या उस का व्यसन पड़ गया हो तो ममाचक्य ( महांतक हो सके ) उसे छोड़ कर दूसरी दवा से उस का काय लेना चाहिये, यदि कदाचित् मविष्मसन हो जाने के कारण मह न छूट सके तो इतना समान तो भवश्य रखना चाहिये कि मोजन करने से प्रथम उसे कभी नहीं संपना चाहिये, क्योंकि भोजन करने से प्रथम समाखू के सूपने से भूख बन्द हो जाती है, इस बात की परीक्षा प्रत्येक सूचनेवाला पुरुष कर सकता है।
८-खाने की तमाखू भी सूपने की तमाखू के समान ही अषगुण करती है, परन्तु समाखू खानेपाने खोग यह समझते हैं कि-तमास्तू के खाने से खुराक हजम होती है, सो उन यह स्वमाछ करना भत्यन्त गस्त है, क्योंकि तमासू के खाने से उसटा भजीर्ण रहता है।
९ - बहुत परिश्रम नहीं करना चाहिये', खुली हुई स्वच्छ (साफ) हवा में मच्छे मार प्रमण करना (घूमना) चाहिये, यदि बहुत नींद लेने की (सोने की) भारत हो तो उसे छोड़ घेना चाहिये सभा मात काल शीघ्र उठ कर झूठी हुई स्वच्छ हवा में घूमना फिरना चाहिये। १० - भोजन करने के पीछे क्षीपदी बांचने, जिखने, पढ़ने तथा सूक्ष्म ( भारीफ ) विषयों के विचार करने के लिये नहीं बैठना चाहिये, किन्तु कम से कम एक घंटा बीव जाने के बाद तक काम करने चाहिये ।
११ - मन के पश्चाने (इजम करने) के लिये गर्म दवाइयां, गर्म खुराक वथा साक दस्त खानेकी दवा (जुखाम यादि) नहीं बेनी चाहियें ।
मस मब्बी रोग से बचने के लिये उमर किसे नियमों के अनुसार घरूना चाहिये, होमरी ( मामा ) को सुधारने के सिमे कुछ समय तक बच्चों की मांति घूम से ही निर्वाह करना चाहिये, भारोम्पता को रखनेवाली सितोपकादि साधारण औषधों का सेवन करना चाहिये तथा घोड़े पर सवार होकर भगवा पैवस ही माताकाक और सामका स्वच्छ वायु के सेवन के किये भ्रमण करना चाहियें, क्योंकि होवरी के सुधारने के लिये वह सर्वोचम उपाय है ॥
१-पचपि सारीरिक ( सरीरसम्बन्धी ) परिभ्रम भी विशेष नहीं करना चाहिये किन्तु मासिक (मसणी) परिश्रम ये भूख कर भी विशेष करना चाहिये क्योंके मानसिक परिश्रम से यह रोग
विशेषता है।
१- हवा मैं भ्रमच करने (घूमने से इस रोग में बहुत ही कम होता है, यह बात पूरे तौर से अनुमद में था चुकी है
३- भोजन करने के पीछे की हो किसने पढ़ने यादि का कार्य करने से भोजन का सो सम्मानम में स्थित रह जाता है अर्थात् परिक माँ होता है
४-क्योंकि ऐसा करने से जठराम का बाभाविक बस म
कर उस मैं विश्र उत्पन्न हो वा है ।