________________
चतुर्थ अध्याय ॥
५५५
जुलाब
के ले चुकने के पीछे ऊपर लिखे अनुसार इलाज करना चाहिये, अथवा किसी अच्छे वैद्य वा डाक्टर से इलाज कराना चाहिये, परन्तु मूर्ख वैद्यो से रसकपूर तथा हीगल आदि दवा कभी नही लेनी चाहिये' ।
यदि कुछ दिनों तक दवा का योग न मिल सके तो उस के यन में लगना चाहिये परन्तु ऊपर लिखे पथ्यानुसार खुराक को जारी रखने में भूल नहीं करना चाहिये' । जो मनुष्य इस रोग से मुक्ति ( छुटकारा ) पाने के बाद पुन: (फिर) कुकर्म ( बुरे (काम) करते है अर्थात् ठोकर खाकर भी नहीं चेतते है उन को पञ्चाख्यानी गधा ही समझना चाहिये |
प्रमेह अर्थात् सुजाख ( गनोरिया) का वर्णन ||
सुजा का रोग यद्यपि स्त्री तथा पुरुष दोनों के होता है परन्तु पुरुष की अपेक्षा स्त्री के इस का दर्द कम मालूम होता है, इस का कारण केवल यही है कि पुरुष की अपेक्षा स्त्री का मूत्रमार्ग बड़ा होता है, इस के सिवाय प्रायः यह भी देखा जाता है कि स्त्री की अपेक्षा यह रोग पुरुष के विशेष होता है ।
शु
कारण --- यह रोग व्यभिचार करने से उत्पन्न होता है तथा वेश्या और ढावे वाली स्त्रिया ही इस रोग का मूल (मुख्य) कारण होती है, तात्पर्य यह है कि व्यभिचार के हेतु ( लिये ) जिस स्थान में बहुत से स्त्री पुरुषों का आगमन तथा परिचय ( मुलाकात ) होता है वही से इस रोग की उत्पत्ति की विशेष सम्भावना होती है ।
१- क्योंकि मूर्ख वैद्य अपनी अज्ञानता से रसकपूर और हींगलू आदि दवा तो रोगी को दे देते हैं परन्तु न तो वे उस के देने के विधान को ही जानते हैं और न अनूपान तथा पथ्य आदि को समझते हैं, इस लिये रोगी को उक्त दवाओं को मूर्ख वैद्य से लेने में परिणाम मे बडी भारी हानि पहुँचती है, अत उक्त दवाओं को मूर्ख वैयों से भूलकर भी नहीं लेना चाहिये ॥
२- क्योंकि पथ्य का वर्ताव दवा से भी अधिक फायदा करता है, (प्रश्न ) यदि पथ्य का सेवन दवा से भी अधिक फायदा करता है तो फिर दवा के लेने की क्या आवश्यकता है, केवल पथ्य का ही सेवन कर लेना चाहिये ? (उत्तर) वेशक ! पथ्य का सेवन दवा से भी अधिक फायदा करता है, परन्तु पथ्य सेवन के समय में दवा के लेने की केवल इतने अश में आवश्यकता होती है कि रोग शीघ्र ही मिट जावे ( क्योंकि दो सहायक मिल कर वैरी को जल्दी ही जीत लेते हैं) यो तो दवा को न लेकर भी केवल पथ्य का सेवन किया जावे तो भी रोग अवश्य मिट जावेगा परन्तु देर लगेगी, इस के विरुद्ध यदि केवल दवा का ही सेवन किया जावे और पथ्य का वर्ताव न किया जावे तो कुछ भी लाभ नहीं हो सकता ( इस विषय मे पहिले लिख चुके हैं ), तात्पर्य यह है कि पथ्य का सेवन मुख्य और दवा का लेना गौण साधन है ॥
३- इस कलिकाल में वेश्याओ के समान यह एक नया व्यभिचार का ढंग चला है अर्थात् कलकत्ता और चम्बई आदि अनेक बड़े २ नगरों मे कुट्टिनी ( व्यभिचार की दलाली करनेवाली ) स्त्री के मकान में आकर गृहस्थों की स्त्रिया और व्यभिचारी पुरुष कुकर्म करते है ॥