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पञ्चम अध्याय ।।
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वील्हा जी के कडूवा और धरण नामक दो पुत्र हुए, वील्हा जी ने भी अपने पिता (तेजपाल ) के समान अनेक धर्मकृत्य किये ।
वील्हा जी की मृत्यु के पश्चात् उन के पाट पर उन का वड़ा पुत्र कडूवा बैठा, इस का नाम तो अलवत्ता कडूवा था परन्तु वास्तव में यह परिणाम में अमृत के समान मीठा निकला।
किसी समय का प्रसंग है कि-यह मेवाडदेशस्थ चित्तौड़गढ़ को देखने के लिये गया, उस का आगमन सुन कर चित्तौड के राना जी ने उस का बहुत सम्मान किया, थोड़े दिनों के बाद मांडवगढ़ का बादशाह किसी कारण से फौज लेकर चित्तौडगढ़ पर चढ़ आया, इस बात को जान कर सब लोग अत्यन्त व्याकुल होने लगे, उस समय राना जी ने कडूवा जी से कहा कि-"पहिले भी तुम्हारे पुरुषाओं ने हमारे पुरुषाओं के अनेक बड़े २ काम सुधारे हैं इस लिये अपने पूर्वजो का अनुकरण कर आप भी इस समय हमारे इस काम को सुधारो'' यह सुन कर कडूवा जी ने बादशाह के पास जा कर अपनी बुद्धिमत्ता से उसे समझा कर परस्पर में मेल करा दिया और बादशाह की सेना को वापिस लाटा दिया, इस बात से नगरवासी जन बहुत प्रसन्न हुए और राना जी ने भी अत्यन्त प्रसन्न होकर बहुत से घोड़े आदि ईनाम में देकर कडूवा जी को अपना मन्त्रीश्वर (प्रधान मन्त्री) बना दिया, उक्त पद को पाकर कडूवा जी ने अपने सद्वर्ताव से वहाँ उत्तम यश प्राप्त किया, कुछ दिनो के बाद कडूवा जी राना जी की आज्ञा लेकर अणहिल पत्तन में गये, वहा भी गुजरात के राजा ने इन का बड़ा सम्मान किया तथा इन के गुणों से तुष्ट होकर पाटन इन्हें सौप दिया, कडूवा जी ने अपने कर्त्तव्य को विचार सात क्षेत्रों में बहुत सा द्रव्य लगाया, गुजरात देश में जीवहिंसा को बन्द करवा दिया तथा विक्रम संवत् १४३२ (एक हजार चार सौ बत्तीस ) के फागुन वदि छठ के दिन खरतरगच्छाधिपात जैनाचार्य श्री जिनराज सूरि जी महाराज का नन्दी ( पाट) महोत्सव सवा लाख रुपये लगा कर किया, इस के सिवाय इन्हो ने शेत्रुञ्जय का संघ भी निकाला और मार्ग में एक मोहर, एक थाल और पाँच सेर का एक मगदिया लड्ड, इन का घर दीठ लावण अपने साधर्मी भाइयो को बाँटा, ऐसा करने से गुजरात भर में उन की अत्यन्त कीर्ति फैल
, सात क्षेत्रों में भी बहुत सा द्रव्य लगाया, तात्पर्य यह है कि इन्हों ने यथाशक्ति जिनशासन का अच्छा उद्योत किया, अन्त में अनशन आराधन कर ये स्वर्गवास को प्राप्त हुए। कडूवा जी से चौथी पीढ़ी में जेसल जी हुए, उन के बच्छराज, देवराज और हस
१-श्री शेजय गिरनार का संघ निकाला तथा मार्ग मे एक मोहर, एक थाल और पाँच सेर का एक मगदिया ल, इन की लावण प्रतिगृह में साधी भाइयों को वाँटी तथा सात क्षेत्रों में भी बहुत सा द्रव्य लगाया ॥