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मैनसम्मवाशिमा ।। मपने पुत्र सेबपाठ को भी छः वर्ष की भासा से ही विद्या का पदाना शुरू किया और नीसि के कपन के अनुसार वश वर्ष तक उस से विपाभ्यास में उपम परिभम फरमाया, तेमपाल की बुद्धि मनुस ही तेष मी मस पर विपा में खूब निपुण हो गया तमा पित्य के सामने ही गृहस्थाश्रम का सब काम करने लगा, उस की बुद्धि को देस कर यो २ नामी रस चकित होने लगे मोर अनेक सरा की बातें करने लगे अर्थात् कोई कावा या कि-"विस के माता पिता विद्वान् हैं उन की सन्तति विज्ञान क्यों न हो" और मेरे कदमा का कि-"तेजपाल के पिता ने अपने लोगों के समान पुत्र का गह नहीं किया किन्तु उस ने पुत्र को विपा सिखा कर उसे सुशोभित करना ही परम गा समझा" इत्यादि, सपर्य यह है कि तेजपाल की मुदि की पत्तुराई को देस कर रईस रोग उसके विषय में मनेक प्रकार की बातें करने लगे, देवयोग से समपर देवलोक को पास हो गया, उस समय तेनपाल की अवस्था मामग पचीस पर्प के भी, पाठगप समझ सकते। शि-विपासहित बुद्धि मौर द्रम्म, ये दोनों एक भगह पर हों तो फिर कहना ही क्या है मर्मात् सोना मोर सगन्म इसी से नाम है, मस्त नपास मे गुनराव के रागाने महुत मा प्रन्य देकर देश को मुकाते के लिमा भर्भात् यह पाटन का मालिक बन गया मोर उस ने विक्रमसमत् १३७७ (एक इबार सीन सो सतहवर ) में ज्येष्ठ पवि एष दशी के दिन टीन तास रुपये उगा कर दादा साहिल चैमापार्य भी दिनकर परिबी महाराव का मन्दी (पाट) महोत्सव पाटन नगर में किया तथा उक महाराज को धाम में लेकर शेजप का संप निको भोर पहुत सा व्रम्प शुम मार्ग में प्रगामा, पीछे सम सप ने मिल र गाठा पहिना फर तेप्रपाम को संपपति का पर विमा, सेजपा ने भी सान की एक मोहर, पफ पाठी और पॉप सेर का एफ म प्रतिगृह में छापण गाय इस मघर यह भनेक शुभ यों को करता रह और भम्त में मपने पुत्र पीता जी को पर फा भार सौंप कर मनमन कर सर्ग को पास हुभा, वात्पर्य यह है कि बात की मृत्यु के पभात् उस के पाट पर उस का पुत्र वीना बी पेठा । १-
मसम्म जो मप्र में किमतगत् ११३ मा सन् 11 में तप पर 10 मरे पारन में सूरपर परनिराजे पे मी नापाको प्रयाय ऐपये? भो यो प्रसमसार ९ में प्रगुन बार । (भमागमा) पर मकर भारि भयपन र ममप्राप्त ए एमोन मयप्राप्ति मार भी पाने बने भये प्रेरणेन या वया भर भीम भाजपा (म पाने पर भी हो ledom पाने पर
पर प्रायःगररापीमा ७५ गिरमा पाही समपरपा पूनमानीय समय पर
१-४मय र माना परागर पार AIR Taratमर mta . परमामा मानिसको