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बैनसम्पदामशिक्षा ||
एक लामानिक नियम है, बस इसी नियम के अनुसार हमारे परम मित्र यतिर्म पण्डित श्रीयुत श्री अनूपचन्द्र श्री मुनि महोदय के स्थापित किये हुए इसलिखित पुस्तकालय ओसवालों के गोत्रों के वर्णन का एक छन्द हमें प्राप्त हुआ उस छन्द में करीब ६०० ( छ सौ ) गोत्रों के नाम है-छन्दोरभमिता (छन्द के बनाने वाले ) ने मूसगोत्र, छाला तथा मविशाला, इन सब को एक में ही मिम्ा दिया है और सब को गोत्र के ही नाम से मिला है कि मिस से उक्त गोत्र भादि बातों के ठीक २ जानने में भ्रम का रहना सम्भव है, मत हम उक्क छन्द में कड़े हुए गोत्रों की नामावलि पाठकों के जानने के लिये अकारादि क्रम से लिखते
को छाँट कर
हैं
सं । गोत्रों के नाम 1
म
१ भमर
२ अनुभ ३ मसोचमा
8 अमी
आ
५ भाईचांग
६ आकाशमार्गी
• चकिया
८ माछा
९ आयरिमा
१०
भामदेव
११ आवझाड़ा
१२ भानावत
१३ अव
से । मोत्रों के नाम ।
१४ भावगोत
१५ आसी
१६ आम्
१७ आखा
I
१८ इछदिमा
ठ
१९ उनकण्ठ
२० उर
भो
२१ ओसवाल
२२ मोदीचा
5
२३ फक
२४ कटारिया
२५ कठियार
२६ कणोर
गोत्रों के नाम |
१- महान की कृप से उच्च स है जय कदम उच्च महान को भी भी धमकी दी और बुद्ध भार जैनविकार के भन्छ प्रदान कम उधम
२७ कनिया
२८ कनोजा
२९ करणारी
३० करहेडी
३१ कड़िया
३२ कठोसिया
३१ कठफोड़
३४ कहा
३५ कसाण
सेत्रों के माम
४० कवाडिया
४१ कालिया
४२ का
४३ काँवसा
४४ फाग
४५ कोकरिमा
४६ साल
४७ जन
४८ काटेक
२६ कठ
१७ कठाल
३८ फनफ
३० फकड़
की प्राप्ति के द्वारा जो हम को योनि में ि करण से भम्यवाद देवे हैं, इन क शिवाय उद्यमान परि गतिवर्ष पति भी है) ने भी से भी धन्यधर बसे है
भी अगर कीमोन ( धानविद करने में हम को बह
४९ कामेड़िया
५० कांधा
५१ कापड़
५२ कौंधिया