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पञ्चम अध्याय ॥
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किस की साख डलवायें, यहाँ तो कोई नहीं है, हाँ यह एक लेोकडी तो खडी है तुम कहो तो इस की साख डलवा दें" सेठ ने कहा कि - " अच्छा इसी की साख डलवा दो" बस लुटेरों ने लकडी की साख लिख दी और सेठ ने गहना आदि जो कुछ सामान अपने पास में था वह सब अपने हाथ से लुटेरों को दे दिया तथा कागज लेकर वहाँ से चला आया, दो तीन वर्ष बीतने के बाद वे ही लुटेरे किसी साहूकार का माल लूट कर उसी नगर में बेंचने के लिये आये और सेठ ने ज्यो ही उन को बाजार में देखा त्यों ही पहिचान कर उन का हाथ पकड लिया और कहा कि - " व्याजसमेत हमारे रुपये लाओ" लुटेरे बोले कि - "हम तो तुम को पहिचानते भी नहीं है, हमने तुम से रुपये कब लिये थे?" लुटेरों की इस बात को सुन कर सेठ जोर में आ गया, क्योंकि वह जानता था कि—यहाँ तो बाजार है, यहाँ ये मेरा क्या कर सकते है, ( किसी कवि ने यह दोहा सत्य ही कहा है कि - ' जगल जाट न छेडिये, हाटा वीच किराड़ ॥ रंगड कदे न छेडिये, मारे पटक पछाड़, ॥ १ ॥ ) निदान दोनो में खूब ही हुज्जत ( तकरार ) होने लगी और इन की हुज्जत को सुन कर बहुत से साहूकार आकर इकट्ठे हो गये तथा सेठ का 'पक्ष करके वे सब लुटेरों को हाकिम के पास ले गये, हाकिम ने सेठ से रुपयों के मागने का सबूत पूछा, इधर देरी ही क्या थी - शीघ्र ही सेठ ने उन ( लुटेरों ) के हाथ की लिखी हुई चिट्ठी दिखला दी, तब हाकिम ने लुटेरों से पूछा कि - "सच २ कहो यह क्या बात है” तब लुटेरों ने कहा कि-“साहब ! सेठ ने यह चिट्टी तो आप को दिखला दी परन्तु इस ( सेठ ) से यह पूछा जावे कि इस बात का साक्षी ( साखी वा गवाह ) कौन है लुटेरों की बात को सुनते ही ( हाकिम के पूछने से पहिले ही ) सेठ बोल उठा कि“मिन्नी" यह सुन कर लुटेरे वोले कि - " हाकिम साहब ! वाणियो झूठो है, सो लकड़ी ने मिन्नी कहे छे” यह सुन कर हाकिम ने उस खत को उठा कर देखा, उस में लकड़ी की साख लिखी हुई थी, बस हाकिम ने समझ लिया कि - बनिया सच्चा है, परन्तु उपहास के तौर पर हाकिम ने सेठ से धमका कर कहा कि - "अरे ! लोकड़ी को मिनी कहता है” सेठ ने कहा कि - " मिन्नी और लकड़ी में के फरक है? मिन्नी २ सात वार मिन्नी” अस्तु, हाकिम ने उन लुटेरों से कागज में लिखे अनुसार सव रुपये सेठ को दिलवा दिये, बस उसी दिन से सब लोग सेठ को 'मिन्नी, कहने लगे और उस की औलाद वाले भी मिन्नी कहलाये ।
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८-सिंगी-पहिले ये जाति के नन्दवाणे ब्राह्मण थे और सिरोही के ढेलड़ी ग्राम में
१-लोंकडी को मारवाडी वोली मे जगली मिन्नी ( विल्ली ) कहते हैं ॥
२–“लोंकडी ने मिन्नी कहे छे" अर्थात् लॉकडी को मिन्नी बतलाता है ॥ ३–“के फरक है” अर्थात् क्या भेद है ॥