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पेनसम्प्रदायसिया ॥ इम प सिपाय रसना मी क साथ मेधुन परन स तमा विस मी प्रदर रोम हो भात् किमी प्रकार की भी भातु जाती हा भमना जिस मोनिमाग में वामन में किसी प्रकार की कोई माथि उम्न मी माम भी संभोग करने से यह राग । जाता है।
परन्तु मामय की मात्र तो यह कि-जिन क यह रोग हो जाता है उन में न प्रार बहुत से लोग विपप सम्रप में भी दुइ अपनी मूल से मीभर नही करत र नुि यही करते है दिगम पीनसान में भा जान फेहेनु भया पूप में पने स हमार यह रागरा गया है, परन्तु मह उन की मूल है, पाकि बुद्धिमान् पुरुष कार के शरा पारण का टीफ निपय पर नते हैं, दमा ! यह निश्चित पात है कि तीक्ष्म मा यम पीन के सान आदि कार स मुजासही नहीं सकता है, क्यापि सुनाम प्रमाग पा सास परम (शा) मा मह पप छान ही से होता है, सो ! यदि मुम्स फा प प मामी का न दूसर के लगा विमा जाने तो उसके भी मह राम हर पिना नहीं बता पात् मपरसही हो पातादिनास प्रगुण ही वर्ग __ यदि किसी दूसरे साधारण असम की रसी को पार गामा जाने तो पेमा असर नही रोगा, पमाफि छाधारण नमम की रसी में मनास पफ के समान गुण ही नही दोसा है। ___ गर्मी की पाली भोर मुनाम य दाना जुद २ राग र क्यालि पाली पप सपा ही दासी और सुनाम फे पप स सुनाम ही होसार परन्तु परीर की सरानी करम में (र फोहानि पहुँचान में) पदार्मा राग भाइ पनि भार पानी पाल भौर सुनाम मार है।
सुनाम सिवाय-मूग माग सापारम शोम विभ में स मी रसीक समान पाव निपाता है।
मर रोग हरम, महुत मि, मसाग भार मय भादिक उपमाग से (सरन में) होता है, परन्तु इसका टीक मुनगम मह समझना चाहिये।
1- मों मन (मम्मान किनमय में सनी मामा गमापम में मय, र)भामारपरकर पसरण व रसायास (विभ) मापस परिन (रमा) पर बंपर ने परतत सामग्रेभप्रानी में मार पवन सर संयम् प्रम और कर्मिय प्रति भी मठ पापीय रस्त भार मानुष्य रूपम frur परपरी मसि ममार में प्रम मा पttar मनु सम्परा माप बना मिरर मनुपम भरणे पार40
Hatam प्रयभरमा मे मनाया ( प्रमा) मनुपरम्पमतामा (अमरनारा) मनुप मात्र