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बैनसम्प्रदायशिक्षा॥ परे हुए धर्म से है, मत तुम्हें प्रवाल देख हम यही राहते हैं कि-दम भी भीगीतराग मगमान् के करे हुए सम्यक्त्वयुक्त दमामूल धर्म को मुनो और परीवा परके उस अमाप करो कि-जिस से तुमारा इस भर भौर पर मब में फल्यान हो तबा तुमारी सन्तठि मी सदा के लिये मुसी हो, क्योंकि क्या है कि
घुरो फल तस्वविचारणं प, वेहस्य सारो प्रतधारणा ॥
अर्यस्य सार किल पात्रदान, वाय फलं प्रीतिकर भराणाम् ॥ १॥ मर्थात् बुद्धि के पाने का फस-तत्तों प विचार करना है, मनुष्य सरीर के पामे प्रसार (फल)बत का (पाखाण आदि नियम का) पारण करना है, पन (क्ष्मी) के पाने का सारमुपात्रों को वान देना है तथा पचन के पाने का फर सब से प्रीति करना है" ॥१॥ " नरेन्द्र !, नीतिशास में कहा गया है कि
यथा चतुर्मि: कनक परीक्ष्यते । निर्पणछेदनतापतानः ॥
सधैष धर्मों पितुपा परीक्ष्यते । अतेन शीलेन तपोदयागुण ॥१॥ "अपात्-कसौटी पर पिसने से, छेनी से काटने से, ममि में तपाने से बौर पौडे द्वारा कटने से, इन चार प्रकारों से मैसे सोने की परीक्षा की माती है उसी पचर मुदि मान् लोग धर्म की भी परीक्षा पार प्रमर से करते हैं पर्भात् भुत (शाम के सपन) से, शीनसे, तप से तथा दया से" ॥१॥ __ "इन में से भुस अर्थात् शाम के वचन से धर्म की इस प्रघर परीक्षा होती है कि वो धर्म शामीय (शामक)वपनों से विस्व न हो चिन्तु धामीप पचनों से समर्षित (पुष्ट किया हुभा) हो उस धर्म का माण करना पाहिये मोर ऐसा धर्म सस श्री पीठ रागकषित है इस लिये उसी ग्रहण करना चाहिये, रे रामन् ! मैं इस बात को किसी पक्षपाव से नहीं करता है किन्तु यह बात विसकट सस्प है, हम समझ सकते हो किवा हम ने ससार को छोड़ दिया तग हमें पक्षपाठ से क्या प्रयोजन है! हे रामन् ! भाप निमय भानो किन हो पीपराम महावीर सामी पर मेरा हा पक्षपाच महीर सामी ने जो कुछ पा है यही मानमा पारिसे मोर दूसरे का मन नहीं मानना पाहिये) और न कपिट भावि जन्म प्रापियों पर मेरा ऐप (किपिट मावि प्रवरम मही मामना पाहिये) किन्तु हमारा यह सिद्धान्त है कि जिस प्र पपन शास भोर मुफि से भविरुद्ध (पप्रतिकर भर्षात् भनुन)ो उसी प्रहम करना पारि ॥१॥
-समीर भयर पारित - फ्नरा प्रे मात म्मरणम्न मे समा जाम. -वही ममस परिमाना भी निराम्तम