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चतुर्थ अध्याय ॥
" गाथा - जीवा सुहमा थूला, संकप्पा आरंभा भवे दुविहा ॥ सवराह निरवराह, साविक्खा चेव निरविक्खा ॥ १ ॥ अर्थ-जगत् में दो प्रकार के जीव है- एक स्थावर और दूसरे त्रस, इन में से स्थावरो के पुनः दो भेद हैं-सूक्ष्म और वादर, उन में से जो सूक्ष्म जीव है उन की तो हिंसा होती ही नही है, क्योंकि अति सूक्ष्म जीवो के शरीर में बाह्य ( बाहरी ) शस्त्र ( हथियार ) आदि का घाव नहीं लगता है' परन्तु यहाँ पर सूक्ष्म शब्द स्थावर जीव पृथ्वी, पानी, अग्नि, पवन और वनस्पति रूप जो बादर पाँच स्थावर है उन का वाचक है, दूसरे स्थूल जीव है वे द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पञ्चेन्द्रिय माने जाते है, इन दो भेदों में सर्व जीव आ जाते है" ।
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“साधु इन सब जीवों की त्रिकरण शुद्धि ( मन वचन और काय की शुद्धि ) से रक्षा करता है, इस लिये साधु के बीस विश्वा दया है परन्तु गृहस्थ ( श्रावक ) से पॉच स्थावर की दया नहीं पाली जा सकती है, क्योंकि सचित आहार आदि के करने से उसे अवश्य हिंसा होती है, इस लिये उस की दश विश्वा दया तो इस से दूर हो जाती है, अब रही दश विश्वा अर्थात् एक त्रस जीवों की दया रही, सो उन त्रस जीवों में भी दो भेद होते हैं-संकल्पसन (सङ्कल्प अर्थात् इरादे से मारना) और आरम्भसंहनन ( आरम्भ अर्थात् कार्य के द्वारा मारना ), इन में से श्रावक को आरम्भहिंसा का त्याग नही है किन्तु सङ्कल्पहिंसा का त्याग है, हा यह ठीक है कि आरम्भहिंसा में उस के लिये भी यत्न अवश्य है परन्तु त्याग नहीं है, क्योकि आरम्भहिंसा तो श्रावक से हुए विना नही रहती है, इस लिये उस शेष दश विश्वा दया में से पाँच विश्वा दया आरम्भहिंसा के कारण जाती रही, अब शेष पाँच विश्वा दया रही अर्थात् सङ्कल्प के द्वारा त्रस जीव की हिसा का त्याग रहा, अब इस में भी दो भेद होते है - सापराधसहनन और निरपराधसहनन, इन में से निरपराधसहनन गृहस्थ को नहीं करना चाहिये अर्थात् जो निरपराधी जीव है यतना रखने का अधिकार है सिद्ध हुआ कि अपराधी जीवों
उनको नही मारना चाहिये, शेष सापराधसहनन में उसे अर्थात् अपराधी जीवो के मारने में यत्नमात्र है, इस से
की दया श्रावक से सदा और सर्वथा नही पाली जा सकती है क्योंकि जब चोर घर में घुस कर तथा चोरी करके चीज को लिये जाता हो उस समय उसे मारे कूटे विना कैसे काम चल सकता है, एव कोई पुरुष जब अपनी स्त्री के साथ अनाचार करता हो तब उसे देख कर दण्ड दिये बिना कैसे काम चल सकता है, इसी प्रकार जब कोई श्रावक राजा हो अथवा राजा का मन्त्री हो और जब वह (मन्त्रित्व दशा में ) राजा के आदेश
१–क्योंकि शस्त्रों की धार से भी वे जीव सूक्ष्म होते हैं इस लिये शस्त्रों की धार का उन पर असर नही होता है ॥