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पञ्चम अध्याय ॥
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१ - निहंगपाल । २ - तालणपाल ३ - तेजपाल । ४- तिहुअणपाल ( त्रिभुवनपाल ) । ५- अनंगपाल । ६ - पोतपाल । ७- गोपाल । ८ - लक्ष्मणपाल । ९ - मदनपाल । १०कुमारपाल | ११ - कीर्त्तिपाल । १२ - जयतपाल, इत्यादि ।
वे सब राजकुमार उक्त नगरी को छोड़ कर जब से मथुरा में आ रहे तब से वे माथुर कहलाये, कुछ वर्षों के वीतने के बाद गोपाल और लक्ष्मणपाल, ये दोनों भाई केकेई आम में जा बसे, सवत् १०३७ ( एक हजार सैतीस ) में जैनाचार्य श्री वर्द्धमानसूरि जी महाराज मथुरा की यात्रा करके विहार करते हुए उक्त (केकेई ) ग्राम में पधारे, उस समय लक्ष्मणपाल ने आचार्य महाराज की बहुत ही भक्ति की और उन के धर्मोपदेश को सुनकर दयामूल धर्म का अङ्गीकार किया, एक दिन व्याख्यान में शेत्रुञ्जय तीर्थ का माहात्म्य आया उस को सुन कर लक्ष्मणपाल के मन में सघ निकाल कर शेत्रुञ्जय की यात्रा करने की इच्छा हुई और थोड़े ही दिनों में सघ निकाल कर उन्होंने उक्त तीर्थयात्रा की तथा कई आवश्यक स्थानों में लाखों रुपये धर्मकार्य में लगाये, जैनाचार्य श्री वर्द्धमानसूरि जी महाराज ने लक्ष्मणपाल के सद्भाव को देख उन्हें संघपति का पद दिया, यात्रा करके जब केकेई ग्राम में वापिस आ गये तब एक दिन लक्ष्मणपाल ने गुरु महाराज से यह प्रार्थना की कि - " हे परम गुरो ! धर्म की तथा आप की सत्कृपा ( बदौलत ) से मुझे सब प्रकार का आनन्द है परन्तु मेरे कोई सन्तति नहीं है, इसलिये मेरा हृदय सदा शून्यवत् रहता है" इस बात को सुन कर गुरुजी ने खरोदय ( योगविद्या ) के ज्ञान - बल से कहा कि-"तुम इस बात की चिन्ता मत करो, तुम्हारे तीन पुत्र होंगे और उन से तुम्हारे कुल की वृद्धि होगी" कुछ दिनों के बाद आचार्य महाराज अन्यत्र विहार कर गये विचरवो बहुत जरूरी है वडा २ शहरा में तथा प्रतिष्ठा होवे तथा मेला होवे जठे - कानफ्रेन्स आप को जावणी हो सके या किस तरह जिस्का समाचार लिखावें-क्योंकि उपदेशक गुजराती आये जिनकी जवान इस तरफ के लोगों के कम समझ मे आती है-आप की जवान में इच्छी तरह समझ सकते हें और आप इस तरफ के देश काल से वाकिफकार हैं-सो आप का फिरना हो सके तो पीछा कृपा कर जवाब लिखें-और खर्च क्या महावार होगा और आप की शरीर की तदुरुस्ती तो ठीक होगी समाचार लिखावे - बीकानेर मे भी जैनक्लब कायम हुवा है- सारा हालात वहा का शिववख्श जी साहव कोचर आप को वाकिफ करेंगे-चीकानेर मे भी बहुत सी बातो का सुधारा की जरूरत है सो वणें तो कोशीश करसी - कृपादृटी है वैसी बनी रहे
आप का सेवक, धनराज कांसटिया- सुपर वाईझर
यद्यपि हमारे पास उक्त पत्र भाया तथापि पूर्वोक्त कारणों से हम उक्त कार्य को स्वीकार नहीं कर मके ॥ १ - एक स्थान में श्रीवर्द्धमान सूरि के बदले में श्रीनेमचन्द्र सूरि का नाम देखा गया है ॥