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१२.
चैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ और उन के कानानुकूल लक्ष्मणपाल के क्रम से ( एक के पीछे एक) चीन के उस्मा हुए, जिन का नाम लक्ष्मणपाल ने यशोपर, नारायण मौर महीचन्द रस्सा, अब ये तीनों पुत्र मौवनावस्था को प्राप्त हुए सब मणपाल ने इन सब का विवाह पर दिया, उन में से नारायण की मी के अब गर्मस्थिति हुई तब प्रथम जापा ( प्रस्त ) कराने के मि नारायण की मी को उस के पीहरपाले ले गये, यहाँ जाने के भाव समासमय उस के एक मोड़ा उत्पन्न हुमा, निस में एक वो साकी थी और दूसरा सर्पारुति (साँप की शुरपाला ) मका उत्पन्न हुआ था, इछ महीनों के बाद बच नारायण की भी पीहर से मुस राठ में भाई तन उस गोरे को देखकर लक्ष्मणपाल आदि सन लोग अस्पन्स पछिस हुए तमा लक्ष्मणपाठ ने मने लोगों से उस साकति मातक के उत्सम होने का कारण पूछा परन्तु किसी ने ठीक २ उस का उधर नहीं दिया (अर्थात् किसी ने कुछ कहा मौर किसी ने कुछ कहा ), इस लिये लक्ष्मणपास के मन में किसी के कहने का ठीक वौर से विश्वास नहीं हुआ, निदान वह मात उस समय यों ही रही, पर सर्पाकति माता का हास सुनिये कि वह शीत ऋतु के कारण सवा धूस्हे के पास आकर सोने लगा, एक दिन भवितणता के पच क्या हुमा किवा सारुति पाठक सो प्रस्हे की रास में सो रहा था भौर उसकी बहिन ने पार घड़ी के वरके उठ कर उसी पुस्से में ममि बना दी, उस ममि से परकर यह सारुति बालक मर गया और मर फर व्यन्तर हुआ, तम पह पन्तर नाग के रूप में वहाँ माफर भपनी बहिन को पहुत पियरने लगा तगा करने उगा कि-बर तक मैं इस म्पन्तरपन में रईगा सर सर सक्ष्मणपास के वंश में कहकिमां कमी मुसी नहीं रहेंगी भात् वरीर में कुछ न कुछ तकरीफ सदा ही बनी रहा करेगी। इस मसँग को सुनफर यहाँ महुस से लोग एकत्रित (वमा) दो गये और परस्पर भनेक प्रकार की बातें करने मगे, पोड़ी देर के नाव उन में से एक मनुष्य ने मिस की कमर में दर्द हो गया था इस म्मन्तर से कहा कि-"यदि सू देवता है वो मेरी कमर के दर्द को दूर कर दे" तब उस मागरूप पन्तर ने उस मनुष्य से कहा कि-"इस लक्ष्मणपास पर की दीवार (मीत) का तू स्पर्श कर, तेरी पीड़ा मठी जायेगी" निदान उस रोगी ने लक्ष्मण पाउ मनन की दीवात का स्पर्श किया और दीमाठ का स्पचे करते ही उस की पीड़ा पती गई, इस प्रत्यक्ष पमस्कार को देख कर ममणपास ने विचारा किया नागरुप में फर तक रहेगा ममात् यह तो वास्तव में म्पन्तर दे, भभी भाप हो जायेगा, इरा लिये इस से वह परन से सेना पाहिये कि मिस से सोगो उपनर हो, यह विपार पर कामपाल ने उस नागरूप म्मन्तर से कहा कि- नागदेरहमारी सन्तति (भौलाद) कोर पर देभा शिलिस से मुमारी कीर्ति इस ससार में बनी रहे" सममग्रह भी बात को सुन कर नागदेव ने उनसे कहा कि-' पर दिया ' " पर यही तुम्हारी