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पञ्चम अध्याय ।।
६३३ ने गुरु जी से अपने नगर में पधारने की अत्यन्त विनति की अतः आचार्य महाराज रत्नपुर नगर में पधारे, वहाँ पहुँच कर राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि-"मै अपने इस राज्य को आप के अर्पण करता हूँ, आप कृपया इसे स्वीकार कर मेरे मनोवाछित को पूर्ण कीजिये" यह सुन कर गुरुजी ने कहा कि-"राज्य हमारे काम का नहीं है, इस लिये हम इस को लेकर क्या करें, हम तो यही चाहते है कि तुम दयामूल जैनधर्म का ग्रहण करो कि जिस से तुम्हारा इस भव और पर भव में कल्याण हो" गुरु महाराज के इस निर्लोम वचन को सुन कर धनपाल अत्यन्त प्रसन्न हुआ और महाराज से हाथ जोड़ कर वोला-कि-"हे दयासागर ! आप चतुर्मास में यहाँ विराज कर मेरे मनोवाछित को पूर्ण कीजिये" निदान राजा के अत्यन्त आग्रह से गुरु महाराज ने वहीं चतुर्मास किया और राजा धनपाल को प्रतिबोध देकर उस का माहाजन वंश और रत्नपुरा गोत्र स्थापित किया, इस नगर में आचार्य महाराज के धर्मोपदेश से २४ खापे चौहान राजपूतों ने और बहुत स महेश्वरियो ने प्रतिबोध प्राप्त किया, जिन का गुरुदेव ने माहाजन चश और मालं आदि अनेक गोत्र स्थापित किये, इस के पश्चात् रत्नपुरा गोत्र की दश शाखायें हुई जो कि निम्नलिखित है:
१-रत्नपुरा । २-कटारिया। ३-कोचेटा । ४-नराण गोता। ५-सापद्राह । ६-भलाणिया । ७-सॉभरिया । ८-रामसेन्या । ९-चलाई । १०-बोहरा ।
रत्नपुरा गोत्र में से कटारिया शाखा के होने का यह हेतु है कि-राजा धनपाल रत्नपुरा की औलाद में झॉझणसिंह नामक एक बड़ा प्रतापी पुरुष हुआ, जिस को सुलतान ने अपना मन्त्री बनाया, झॉझणसिंह ने रियासत का इन्तिजाम बहुत अच्छा किया इस लिये उस की नेकनामी चारों तरफ फैल गई, कुछ समय के वाद सुलतान की आज्ञा लकर झाँझणसिंह कार्तिक की पूर्णिमा की यात्रा करने के लिये शत्रुञ्जय को रवाना हआ. वहाँ पर इस की गुजरात के पटणीसाह अवीरचद के साथ (जो कि वहाँ पहिले आ पहुंचा था) प्रमु की आरति उतारने की बोली पर वदावदी हुई, उस समय हिम्मत बहादुर मुहते झॉझणसिंह ने मालवे का महसूल ९२ (वानवे ) लाख (जो कि एक वर्ष के इजारह में आता था) देकर प्रभुजी की आरती उतारी, यह देख पटणीसाह भी चकित हो गया और उसे अपना साधर्मी कह कर धन्यवाद दिया, झाँझणसिंह पालीताने से रवाना हो कर मार्ग में दान पुण्य करता हुआ वापिस आया और दर्वार में जाकर
१-१-हाडा। २-देवडा। ३-सोनगरा । ४-मालडीचा । ५-कूदणेचा। ६-वेडा। ७-बालोत । ८चीवा। ९-काच । १०-खीची। ११-विहल । १२-संभटा। १३-मेलवाल । १४-वालीचा। १५-माल्हण । १६-पावेचा। १७-कावलेचा। १८-रापडिया। १९-दुदणेच । २०-नाहरा । २१-ईवरा । २२-राकसिया । २३-वाघेटा । २४-साचोरा ॥
२-माल जाति के राठी महेश्वरी ये ॥