________________
पञ्चम अध्याय ||
६३१
करने लगे, जोधपुर नगर में कुल ओसवालों के चौधरी ये ही हैं, अर्थात् न्यात ( जाति ) सम्बन्धी काम इन की सम्मति के विना नही होता है, ये लडके के शिर पर नौ वर्ष तक चोटी को नहीं रखते है, पीछे रखते है, इन में जो बोरी दासोत कहलाते है वे ब्राह्मणो को और हिजड़ों को व्याह में नहीं बुलाते है, जोधपुर में भोजकों (सेवकों) से विवाह करवाते है |
एक भण्डशाली बीकानेर की रियासत में देशनोक गॉव में जा बसा था वह देखने में अत्यन्त भूरा था, इस लिये गाँववाले सब लोग उस को भूरा २ कह कर पुकारने लगे, इस लिये उस की औलाद वाले लोग भी भूरा कहलाने लगे ।
ये सब ( ऊपर कहे हुए ) राय भण्डशाली कहलाते हैं, किन्तु जो खड भणशाली कहलाते है वे जाति के सोलखी राजपूत थे, इस के सिवाय खडभणशालियो का विशेष
वर्णन नही प्राप्त हुआ ||
आठवीं संख्या - आयरिया, लूणावत गोत्र ॥
सिन्ध देश में एक हजार ग्रामों के भाटी राजपूत राजा अभय सिंह को विक्रम संवत् ११७५ ( एक हजार एक सौ पचहत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी महाराज ने प्रतिबोध देकर माहाजन वंश और आयरिया गोत्र स्थापित किया, इस की औलाद में लूणे नामक एक बुद्धिमान् तथा भाग्यशाली पुरुष हुआ, उस की औलाद वाले लोग लूणावत कहलाने लगे, लूणे ने सिद्धाचल जी का सघ निकाला और लाखों रुपये धर्मकार्य में खर्च किये, कोलू ग्राम में काबेली खोडियार चारणी नामक हरखू ने ल को वर दिया था इस लिये लूणावत लोग खोड़ियार हरखू को पूजते हैं, ये लोग बहुत पीढ़ियों तक बहलवे ग्राम में रहते रहे, पीछे जैसलमेर में इन की जाति का विस्तार होकर मारवाड़ में हुआ ॥
नवीं संख्या - बहूफणी, नाहटा गोत्र ॥
विक्रम
धारा नगरी का राजा पृथ्वीधर पॅवार राजपूत था, उस की सोलहवाँ पीढ़ी में जोवन और सखू, ये दो राजपुत्र हुए थे, ये दोनों भाई किसी कारण धारा नगरी से निकल कर और जागल, को फतह कर वही अपना राज्य स्थापित कर सुख से रहने लगे थे, संवत् ११७७ ( एक हजार एक सौ सतहत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी महाराज ने जोबन और सच्चू ( दोनो भाइयों ) को प्रतिबोध देकर उन का माहाजन वंश और बहूफणागोत्र स्थापित किया ।
इन्ही की औलादवाले लोग युद्ध में नहीं हटे थे इस लिये वे नाहटा कहलाये ।
१- हूणा नाम का अपभ्रंश बाफणा हो गया है ॥