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पञ्चम अध्याय |
भैंसा साह ने गुजरात देश में गुजरातियों की जो लॉंग छुड़वाई उस का वर्णन ॥
भैसा साह कोट्यधिपति तथा बड़ा नामी साहूकार था, एक समय भैसा साह की मातु:श्री लक्ष्मीबाई २५ घोड़ों, ५ रथों, १० गाडियों और ५ ऊँटो को साथ लेकर सिद्धगिरि की यात्रा को रबाना हुईं, परन्तु दैवयोग से वे द्रव्य की सन्दूक (पेटी) को साथ में लेना भूल गई, जब पाटन नगर में (जो कि रास्ते में था ) मुकाम किया तब वहाँ द्रव्य की सन्दूक की याद आई और उस के लिये अनेक विचार करने पड़े, आखिरकार लक्ष्मीबाई ने अपने ठाकुर (राजपूत) को भेज कर पाटन नगर के चार बड़े २ व्यवहारियों को बुलवाया, उन के बुलाने से गर्धमसाह आदि चार सेठ आये, तब लक्ष्मीबाई ने उन से द्रव्य ( रुपये ) उधार देने के लिये कहा, लक्ष्मीबाई के कथन को सुन कर गर्वभसाह ने पूछा कि - " तुम कौन हो और कहाँ की रहने वाली हो" इस के उत्तर में लक्ष्मीबाई ने कहा कि “मैं भैंसे की माता हूँ" लक्ष्मीबाई की इस बात को सुन कर गर्धभसाह ने उन डोकरी लक्ष्मीबाई से हॅसी की अर्थात् यह कहा कि - "भैसा तो हमारे यहाँ पानी की पखाल लाता है" इस प्रकार लक्ष्मीबाई का उपहास (दिल्लगी ) करके वे गर्धभसाह आदि चारों व्यापारी चले गये, इधर लक्ष्मीबाई ने एक पत्र में उक्त सब हाल लिखकर एक ऊँटवाले अपने सवार को उस पत्र को देकर अपने पुत्र के पास भेजा, सवार बहुत ही शीघ्र गया और उस पत्र को अपने मालिक भैसा साह को दिया, भैंसा साह उस पत्र को पढ़ कर उसी समय बहुत सा द्रव्य अपने साथ में लेकर रवाने हुआ और पाटन नगर में पहुँच कर इधर तो स्वय गर्धमसाह आदि उस नगर के व्यापारियों से तेल लेना शुरू किया और उधर जगह २ पर अपने गुमाश्तों को भेज कर सब गुजरात का तेल खरीद करवा लिया तथा तेल की नदी चलवा दी, आखिरकार गर्धमसाह आदि माल को हाजिर नही कर सके अर्थात् बादे पर तेल नहीं दे सके और अत्यन्त लज्जित होकर सब व्यापारियों को इकट्ठा कर लक्ष्मीबाई के पास जा कर उन के पैरों पर गिर कर बोले कि "हे माता | हमारी प्रतिष्ठा अब आप के हाथ में है" लक्ष्मीबाई अति कृपालु थीं अतः उन्हों ने अपने पुत्र भैसे साह को समझा दिया और उन्हें क्षमा करने के लिये कह दिया, माता के कथन को भैंसे साह ने स्वीकार कर लिया और अपने गुमाश्तों को आज्ञा दी कि यादगार के लिये इन सब की एक लॉग खुलवा ली जावे और इन्हें माफी दी ! जावे, निदान ऐसा ही हुआ कि भैसा साह के गुमाश्तों ने स्मरण के लिये उन सब गुज
१-इन का निवासस्थान मॉडवगढ़ था, जिस के मकानों का खंडहर अब तक विद्यमान है, कहते हैं कि-इन के रहने के मकान में कस्तूरी और अम्बर आदि सुगन्धित द्रव्य पोते जाते थे, इन के पास लक्ष्मी इतनी थी कि जिस का पारावार (गोर छोर ) नहीं था, भैसा साह और गद्दा साह नामक ये दो भाई थे ॥