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पञ्चम अध्याय ।।
६२७ प्रमाणरूप बहुत से प्राचीन लेख देखने में आये है परन्तु एक प्राचीन गुरुदेव के स्तोत्रं म यह भी लिखा है कि-प्रतिबोध देकर एक लाख तीस हजार श्रावक बनाये गये थे, उक्त श्रावकसघ में यद्यपि ऊपर लिखे हुए तीनो ही वर्ण थे परन्तु उन में राजपूत विशेष थ, उन को अनेक स्थलों में प्रतिबोध देकर उन का जो माहाजन वश और अनेक गोत्र स्थापित किये गये थे उन में से जिन २ गोत्रो का इतिहास प्राप्त हुआ उन को अव लिखते है ॥ ' छठी संख्या-चोरडिया, भटनेरा, चौधरी, सावणसुखा,
गोलेच्छा, बुच्चा, पारख और गद्दहिया गोत्र ॥ ___ चन्देरी के राजा खरहत्थसिंह राठोर ने विक्रम सवत् ११७० ( एक हजार एक सौ सत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी महाराज के उपदेश से दयामूल जनधर्म का ग्रहण किया था, उक्त राजा (खरहत्थ सिंह ) के चार पुत्र थे-१-अम्बदव । २-नींबदेव । ३- सासाह और ४-आसू । इन में से प्रथम अम्बदेव की औलाढवाले लोग चोर बेरडिया (चोरडिया) कहलाये।
चोर बेरडियों में से नीचे लिखे अनुसार पुनः शाखायें हुई:
१-तेजाणी । २-धन्नाणी । ३-पोपाणी । ४-मोलाणी । ५-गल्लाणी । ६-देवसयाणा । ७-नाणी। ८-श्रवणी । ९-सदाणी । १०-कक्कड । ११-मक्कड । १२-भक्कड़ १३-लुटकण । १४-ससारा । १५-कोबेरा । १६-भटारकिया । १७-पीतलिया।
दूसरे नीवदेव की औलादवाले लोग भटनेरा चौधरी कहलाये । तीसरे भंसासाह के पाँच स्त्रियाँ थीं उन पाँचों के पॉच पुत्र हुए थे१-कुँवर जी । २-गेलो जी । ३-बुच्चो जी । ४-पास जी और ५-सेल्हस्थ जी। इन में से प्रथम कुँवर जी की औलादवाले लोग साहसुखा ( सावणसुखा ) कहलाये।
१-वड वडे गामे ठाम ठाम भूपती प्रतिवोधिया ॥ इग लक्खि ऊपर सहस तीसा कलू मे श्रावक किया। परचा देखाख्या रोग झाझ्या लीक पायल सतए ॥ जिणदत्त सूरि सूरीस सद गुरु सेवता सुख सन्तए ॥२१॥
२-कनोज में आसथान जी राठौर ने युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी महाराज से कहा था कि-"राठौर आज से लेकर जैनधर्म को न पालनेवाले भी खरतरगच्छवालो को अपना गुरु मानेगे। आसथान जी के ऊपर उक्त महाराज ने जव उपकार किया था उस समय के प्राचीन दोहे वहुत से हैं-जो कि उपाध्याय श्री मोहन लाल जी गणी के द्वारा हम को प्राप्त हुए हैं, जिन मे से इस एक दोहे को तो प्राय बहुत से लोग जानते भी है
दोहा-गुरु खरतर प्रोहित सेवड, रोहिडियो वार॥
घर को मगत दे दडो, राठोड़ां कुल भट्ठ ॥ १॥