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ग कर दिया के कारण अत्यन्त मात्र विख्यात हुआन में सर्प का उपकी
पञ्चम अध्याय ॥
६२५ सन्तति (औलाद ) का तथा तुम्हारे मकान की दीवाल का जो स्पर्श करेगा उस की कमर में चिणक से उत्पन्न हुई पीड़ा दूर हो जावेगी और तुम्हारे गोत्र में सर्प का उपद्रव नही होगा' बस तब ही से 'वरदिया, नामक गोत्र विख्यात हुआ, उस समय उस की बहिन को अपने भाई के मारने के कारण अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ और उस ने शोकवश अपने प्राणा का त्याग कर दिया और वह मरकर व्यन्तरी हुई तथा उस ने प्रत्यक्ष होकर अपना नाम भूवाल प्रकट किया तथा अपने गोत्रवालो से अपनी पूजा कराने की स्वीकृति ले ली, तब स यह वरदियो की कुलदेवी कहलाने लगी, इस गोत्र में यह बात अब तक भी सुनने में आती है कि नाग व्यन्तर ने वर दिया ॥
तीसरी संख्या-कुकुड़ चोपड़ा. गणधर चोपड़ा गोत्र ॥ खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री जिन अभयदेवसूरि जी महाराज के शिष्य तथा वाचनाचार्यपद में स्थित श्री जिनवल्लभसूरि जी महाराज विक्रम संवत् ११५२ (एक हजार एक सौ बावन ) में विचरते हुए मण्डोर नामक स्थान मे पधारे, उस समय मण्डोर का राजा नानुदे पड़िहार था, जिस का पुत्र धवलचन्द गलित कुष्ठ से महादुःखी हो रहा था, उक्त सूरि जी महारान का आगमन सुन कर राजा ने उन से प्रार्थना की कि-"हे परम गुरो! हमारे कुमार के इस कुष्ठ रोग को अच्छा करो" राजा की इस प्रार्थना को सुन कर उक्त आचार्य महाराज ने कुकड़ी गाय का घी राजा से मॅगवाया और उस को मन्त्रित कर राजकुमार के शरीर पर चुपड़ाया, तीन दिन तक शरीर पर घी के चुपड़े जाने से राजकुमार का शरीर कचन के समान विशुद्ध हो गया, तब गुरु जी महाराज के इस प्रभाव को देखकर सब कुटुम्ब के सहित राजा नानुदे पडिहार ने दयामूल धर्म का ग्रहण किया तथा गुरुजी महाराज ने उस का महाजन वश और कुकुड चोपड़ा गोत्र स्थापित किया, राजा नानुदे पड़िहार का मन्त्री था उस ने भी प्रतिबोध पाकर दयामूल जैनधर्म का महण किया और गुरु जी महाराज ने उस का माहाजन वंश और गणेधर चोपड़ा गोत्र
स्थापित किया।
राजकुमार धवलचन्दजी से पॉचवी पीढ़ी में दीपचन्द जी हुए, जिन का विवाह ओसवाल महाजन की पुत्री से हुआ था, यहाँ तक ( उन के समय तक) राजपूतों से सम्बध होता था, दीपचन्द जी से ग्यारहवाँ पीढ़ी में सोनपाल जी हुए, जिन्हों ने संघ निकाल कर शेत्रुञ्जय की यात्रा की, सोनपाल जी के पोता ठाकरसी जी बड़े बुद्धिमान् तथा चतुर हुए, जिन को राव चुडे जी राठौर ने अपना कोठार सुपुर्द किया था, उसी
१-"वर दिया" गोन का अपभ्रश "वरदिया" हो गया है ॥ २-इस गोत्र वाले लोग बालोतरा तथा पञ्चभद्रा आदि मारवाड के स्थानों में हैं ।