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चैनसम्मवाना ||
वचन और काम से न तो स्वयं रात्रि में भोजन करे, न रात्रि में मोजन कराने और न रात्रि में भोजन करते हुए को भला जाने"
"इन मतों के सिवाय साधु को उचित है कि- मूख और प्यास भादि माईस परीषदों को जीते सत्रह मकार के सयम का पालन करे तथा भरणसचरी और करणसरी के गुणों से युक्त हो, भावितात्मा होकर भी वीतराग की आशानुसार चल कर मोक्षमार्ग का साधन करे, इस प्रकार अपने कर्तव्य में तत्पर बो साधु ( मुनिराम ) हैं वे ही ससार सागर से स्वयं सर नेपाले तथा दूसरों को तारनेवाले और परम गुरु होते हैं, उन में भी उत्सर्गनम, अपणायनम, वम्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार चल कर संगम के निर्वाह करनेवाले तथा सोमा, मुँहपची, घोळपट्टा, चद्दर, पॉंगरणी, छोमड़ी, दण्ड मौर पात्र के रस्खनेवाले श्वेताम्बरी शुद्ध धर्म के उपदेशक यति को गुरु समझना चाहिये, इस प्रकार के गुरुमों के भी गुणस्थान के आश्रम से, निषष्ठे के योग से और काम के प्रभाव से समयानुसार उत्कृष्ट, मध्यम और वषन्य, ये तीन वर्षे होते हैं" ।
" दूसरा भावधर्म अर्थात् गृहस्थधर्म है - इस धर्म का पालन करनेवाले गृहस्य कोई यो सम्पवस्वी होते हैं जो कि नब तत्वों पर मायावस्यरूप से श्रद्धा रखते हैं, पाप को पाप समझते हैं, पुष्प को पुण्य समझते हैं और कुगुरु कुवेव तथा कुषम को नहीं मानते हैं किन्तु सुगुरु सुवेष मौर मर्म को मानते हैं अर्थात् अठारह मकार के वूपयों से रहित श्री धीतराग देव को देव मानते हैं और पूर्वाक क्षणों से युक्त गुरुषों को अपना गुरु मानते हैं तथा सर्वेश के कड़े हुए वयामूळ धर्म को मानते है ( मे सम्मक्स्वी भवक के स्थान हैं), ये पहिले वर्ज के भावक है, इन के कृष्ण वासुदेव तथा श्रेणिक राजा के समाने मत और स्यास्मान (पचक्लाण ) किसी वस्तु का त्याग नहीं होता है" ।
" दूसरे दर्जे के मानक वे हैं जो कि सम्मवस्व से युक्त बारह व्रतों का पासन करते हैं, बारह से है-स्थूल माणातिपाठ, स्थूलमुपावाद, स्थूम अदद्यादान, स्थूममैथुन, स्थूलपरिमा दिवापरिमाण, भोगोपभोग मठ मनवण्डत, सामायिक मत देखाaat as, पौषोपणास व सभा भतिषिविभाग व्रत" ।
"हे रावेन्द्र ! इन भारद क्यों का सारांश संक्षेप से तुम को सुनाते हैं ध्यानपूर्वक सुनो-पूर्वा साधु के मेि तो बीस विश्वा दया है अर्थात् उक साधु योग बीस विश्वा दया का पालन करते हैं परन्तु गृहस्त्र से तो केवळ समा विश्वा दी दमा का पालन करना बन सकता है, देखो"
१- प्रमादी और भारी बारि २-यह भी
कम के भय से पहले दर्जे के ग्रम्भका पांच गुन सम्यक्तयुक अनुहा