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मेनसम्प्रदायशिक्षा ||
है, यह रसी पीछे रंग की सभा गाड़ी होती है, किसी २ के रसी का थोड़ा दाग पड़ता है और किसी २ के अत्यन्त रसी निकलती है भर्थात् घार के मन्द धार के साम में थोड़ी २ कई बार उतरती है और उस के
समान गिरती है, पेशान उतरने के समय बहुत
के
शरीर के
पती है,
अपने हाथ से मात्र के मह करने को एक अति खराब और मद्य चरामक व्याभि चाहिये इस यानि के मन इस रोग से युत पुरुष में इस प्रकार पाये जाते है-शरीर दुर्गा है, प्रभाव चिडने वाम्म तथा चेहरा पीका भोर चिन्ता बुत रहता है सुखाकृति विपी हुई दोन पद्म चिमटी है, बैठती है, सुख सम्या साप्रद है, वह नीचे को रहती है, इस पाप कम करनेवाब्य बन इस प्रकार भयभीत और विवातुर दीख पड़ता है कि मानो उसका पापाचरण दूसरे को झट से भागा उस का समाद डरपोक कम जाता है और उसकी छाती (या या दिक) बहुत श्री साहसी (नाहिम्मत) हो जाती है, यहाँ तक कि वह एक साधारण कारण से भी भड़कता है, उसे श्री कम भाती है और सम बहुत भाते हैं, उस के सब पैर बहुधा ठेके होते है (शरीर की हो जाने का यह एक खास चि है) इस प्रदेष का शीघ्र ही अवशेष (फ) पर सुधरने का पोम्य उपाय म किया जाये तो श्ररीर का प्रतिदिन कम होता जाता है, म दिने गर्ने तन बाती है और संकुचित हो जाती है तथा धाम और औक का रोग उत्पन हो जाता है, बहुत इस खराबी से अपस्मारभत् सुगी का असाध्य रोग हो जाता है, दिधीरिया का भूत मी उस के सरीर में मुझे बिना नहीं रहता है (अवश्य बुस जाता है) उस के बुसाने से बेचारा के समान अथवा सर्वकाही उम्मादी (पापा) बन पा है उपर की हुई रानियों के तिवारी मी भेट १ गुप्तचरामियां होती है को रोपी कयं ही समझ सकता है तथा प्राथाना के कारण उनको बहारों से नहीं सकता है और यदि का भी है तो उब के मूल कारण को गुप्त रखता है और विशेषकर माता पिता भनि गरे बमों को तो इन सब खरालियों से भी रखता है, म गुप्त रानियों का एक वर्ष इस प्रकार है कि स्मरणचि कम हो जाती है, वपुटी में अम्मा (गड़बड़ हो जाती है, समाब में एकदम परिवर्तन ( फेरफार) से पता है, कम हो जाती है, काम काम में आम और निस्सा रहता है, मन ऐसा अव्यवस्थित भीर स्थिर क जाता है उससे कोई नियम के साथ तथा नियमपूर्वक वहाँ से सकता है, ममय सम्बन्धी कार्य निर्णय पड़ जाते है, पेशाब करते समय उसके कुछ वर्ष क्षेत्र है भगवा पेशाल की
जवान मनुष्य का
हुआ करती है, सूत्रस्थान का सुख
वारंवार करंप को भाता है, बीर्य काय बारे बार हुआ करता है, मारण कारण के होने पर भी यह मभीर भीड़ और साहसाहीन हो जाता है की पानी के समान करता है, वीर्यपात के साथ समक सी हुआ करती है, कोकी में दर्द हुआ करता है तथा उत में भार अधिक मत होता है और कम में बार बार बीर्यपात होता है, कुछ समय के बाद भाव सम्बन्धी अनेक महत् हो है वसेर स्कुलख विक्रम्मा हो पता है, इस प्रकार शरीर के विकम्मे पर आने से यह बेचारा बीरे ९ पुस्पल से हीन हो जाता है, इसी प्रकार ज कोई भी ऐसे पुराचरण में पड़ जाती है तो उस में से सीन के सब सम मह हो जाते है दबाव का धर्म भी नाम को प्राप्त हो वा है।