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बेनसम्प्रदायशिक्षा |
आचार्यगुणों से परिपूर्ण, उपकेसगच्छीय जैनाचार्य श्री रसप्रभसूरि जी महाराज पाँच सौ साधुओं के साथ बिहार करते हुए श्री बापू श्री अचलगढ़ पर पधारे थे, उन का यह नियम था कि वे (उच्छ सूरि जी महाराज ) मासक्षमण से पारणा किया करते थे, उन की ऐसी कठिन तपस्या को देख कर अचलगढ की अधिष्ठात्री अम्बा देवी प्रसन्न होकर श्री गुरु महाराज की भक्त हो गई, भव जब उक्त महाराज ने वहाँ से गुजरात की तरफ बिहार करने का विचार किया तय अम्बा देवी ने हाथ जोड़ कर उन से प्राथना की कि “हे परम गुरो ! आप मरुधर ( मारवाड़ ) देव की तरफ बिहार कीजिये, क्योंकि स के उभर पधारने से दयामूल धर्म ( बिनधर्म) का उद्योत होगा" देवी की इस प्रार्थना को सुन कर उक माचार्य महाराज ने उपयोग देकर देखा तो उन को देवी का उक वचन ठीक माख्म हुआ, तब महाराज ने अपने साथ के पाँच सौ मुनियों (सानुओं) को धर्मोंप्रवेश देने के लिये गुजरात की तरफ विवरने की आशा दी तथा भाप एक छिप्य को साथ में रख कर मामानुग्राम ( एक ग्राम से दूसरे ग्राम में ) विहार करते हुए भोसिमाँ पट्टेन में माये तथा नगर के बाहर किसी देवालय में घ्यानारूढ होकर श्रीजी ने मास
में अब तक माहाजन नाम का ही व्यवहार होता है जिस को बने हुए अनुमान साथ सौ बर्ष हुए है) इस इसी नाम का किया है।
सम्मेर में माहाजनसर" मामक एक कुआ है लिये हम ने मी इतिहास में तथा अन्यन
सी
बहुत से स्पेय माह्मजनबच्चनाओं (ओसणाओं) को पनियाँ या बालियाँ (वैश्य) जन की बड़ी मूक है, क्योंकि उच्च महणाले जैन क्षत्रिय (जिनधर्मानुयारी राजपूत) है, इस वैश्य समझना महाभ्रम है ।
हमारे बहुत से भोळेभावे भोखाल भादा भी दूसरों के मन से अपनी बेदम यति सुख अपने को मैदन ही समझने बगे है, यह जन की भाता है, उन को चाहिये कि दूसरों के कथन से अपने को पैन कापि न समझे किन्तु ऊपर किये अनुसार अपने को चैमक्षत्रिय माने ।
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हमने श्रीमान् माम्पवर सेठ श्री चौदस की हड्डा (बीकानेर) से सुना है कि बनारसमियासी राज्य शिवप्रसार सितारे इन्य ने मनुष्यख्या के परिगणन (मधु॑मनुमारी श्री मिनती) में अपने को जैवक्षनिष किखाया है, हमें यह झुन कर ममन्त प्रसनता हुई क्या कि बुद्धिमान् का यही धर्म है कि अपने प्राचीन जन्म को ठीकरीति से क्षमा कर ही अपने को माने और
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१- इस नगरी के बसने का कारण यह है कि श्रीमान नगर ( जिस को अब मीनमा
राणा पंवार बाकी सीमसैन का पुत्र भौपुत्र था उसका पुत्र उत्पस (उप) कुमार और सार मन्त्री मैं बन्ध जन भारह हजार कुटुम्ब के सहित कैसी काम से बसरा नगर बसाने के लिये श्रीमान वपर सेनिक मे और वर्तमान म जिस स्थान पर जोनपुर बसा है उस से पह कोल के पास पर उतर शिक्षा में कार्बोों मनुष्यों की बच्चीरूस उपकेक्षपान (बाक्षियों ) नामक नगर बसाया था यह नगर बोठे दो समय में अच्छी होस् से कुछ ( रौनकमार ) से पना तेरेसने टीपुर श्रीषर्धनाब खामी के छठे