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चतुर्थ अध्याय ॥
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( होजरी ) की वादी दूर होती है तथा गर्म जल के साथ लेने से आमवात और गृधेसी रोग दूर हो जाते है ।
४५-घी, तेल, गुड, सिरका और सोंठ, इन पाचों को मिला कर पीने से तत्काल देह की तृप्ति होती है तथा कमर की पीड़ा दूर होती है, निराम ( आमरहित) कमर की पीडा को दूर करनेवाला इस के समान दूसरा कोई प्रयोग नहीं है ।
४६ - सिरस के बक्कल को गाय के मूत्र मे भिगा देना चाहिये, सात दिन के बाद निकाल कर हींग, बच, सोंफ और सेंधा निमक, इन को पीस कर पुटपाक करके उस का सेवन करना चाहिये, इस का सेवन करने से दारुण ( घोर ) कमर की पीडा, आमवृद्धि,
वृद्धि के सब रोग तथा वादी के सब रोग दूर हो जाते हैं ।
४७- अमृतादि चूर्ण — गिलोय, सोंठ, गोखुरू, गोरखमुंडी और वरैना की छाल, इन के चूर्ण को दही के जल अथवा काजी के साथ लेने से सामवात ( आम के सहित वादी) का शीघ्र ही नाश होता है ।
४८ - अलम्बुषादि चूर्ण-- अलम्बुषा ( लजालू का भेद ), गोखरू, त्रिफला, सोठ और गिलोय, ये सब क्रम से अधिक भाग लेकर चूर्ण करे तथा इन सब के बरावर निसोत का चूर्ण मिलावे, इस में से एक तोले चूर्ण को छाछ का जल, छाछ, काजी, अथवा गर्म जल के साथ लेने से आमवात, सूजन के सहित वातरक्त, त्रिक, जॉनु, ऊरु और सन्धियों की पीड़ा, ज्वर और अरुचि, ये सब रोग मिट जाते है तथा यह अलम्बुषादि चूर्ण सर्वरोगो का नाशक है ।
४९ - अलम्बुषा, गोखुरू, वरना की जड, गिलोय और सोठ, इन सब औषधियो को समान भाग लेकर इन का चूर्ण करे, इस में से एक तोले चूर्ण को काजी के साथ लेने से आमबात की पीड़ा अति शीघ्र दूर हो जाती है अर्थात् आमवात की वृद्धि में यह चूर्ण अमृत के समान गुणकारी ( फायदेमन्द ) है
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१० - दूसरा अलम्बुषादि चूर्ण - अलम्बुषा, गोखरू, गिलोय, विधायरा, पीपल, निसोत, नागरमोथा, वरना की छाल, साठ, त्रिफला और सोंठ, इन सब ओषधियों को
१ - यह रोग वातजन्य है ॥
२-अर्थात् आमरहित ( विना आम की ) यानी केवल वादी की पीडा शीघ्र ही इस प्रयोग से दूर हो नाती है ॥
2- वरना को संस्कृत में वरुण तथा वरण भी कहते हैं ॥
४-क्रम से अधिक भाग लेकर अर्थात् अलम्बुषा एक भाग, गोखुरू दो भाग, त्रिफला तीन भाग, सौठ चार भाग और गिलोय पाँच भाग लेकर ॥
५- जानु अर्थात् घुटने ॥
६- साठ अर्थात् लाल पुनर्नवा, इस (पुनर्नवा ) के बहुत से भेद है, जैसे- वेत पुनर्नवा, इसे हिन्दी में विपखपरा कहते हैं तथा नीली पुनर्नवा, इसे हिन्दी में नीली साठ कहते है, इत्यादि ॥
७- त्रिफला अर्थात् हरड बहेडा और ऑवला, ये तीनों समान भाग वा क्रम से अधिक भाग ॥