________________
चतु अध्याय ॥
५९९
सेर जल से अथवा केवल उक्त क्वाथ और कल्क से ही घृत को सिद्ध करना चाहिये, यह शुण्ठीघृत वातकफ को शान्त करता है, अग्नि को प्रदीप्त करता है तथा कमर की पीड़ा और आम को नष्ट करता है ।
५६ - कांजिकादिघृत- हींग, त्रिकुटा, चव्य और सैंधा निमक, इन सब को प्रत्येक को चार २ तोले लेवे तथा कल्क कर इस में एक सेर वृत और चार सेर काजी को डाल कर पचावे, यह कांजिकघृते उदररोग, शूल, विबन्ध, अफरा, आमवात, कमर की पीड़ा और ग्रहणी को दूर करता है तथा अग्नि को प्रदीप्त करता है ।
५७ - शृङ्गवेरादिघृत - अदरख, जवाखार, पीपल और पीपरामूल, इन को चार २ तोले लेकर कल्क करे, इस में एक सेर घृत को तथा चार सेर काजी को डाल कर पकावे, यह घृत विबन्ध, अफरा, शूल, आमवात, कमर की पीडा और ग्रहणी को दूर करता है तथा नष्ट हुई अग्नि को पुनः उत्पन्न करता है ।
५८ - प्रसारणीलेह - प्रसारणी ( खीप ) के चार सेर क्वाथ में एक सेर घृत डाल कर तथा सोंठ, मिर्च, पीपल और पीपरामूल, इन को चार २ तोले लेकर तथा कल्क बना कर उस में डाल कर वृत को सिद्ध करे, यह घृत आमवात रोग को दूर कर देता है ।
५९ - प्रसारणीतैल- प्रसारणी के रस में अडी के तेल को सिद्ध कर लेना चाहिये तथा इस तेल को पीना चाहिये, यह तेल सब दोषों को तथा कफ के रोगों को शीघ्र ही नष्ट कर देता है ।
६० - द्विपञ्चमूल्यादितैल - दशमूले का गोंद, फल, दही और खट्टी कांजी, इन के साथ तेल को पकाकर सिद्ध कर लेना चाहिये, यह तैल कमर की पीड़ा, ऊरुओं की पीड़ा, कफवात के रोग और बालग्रह, इन को दूर करता है तथा इस तेल की वस्ति करने से (पिचकारी लगाने से ) अग्नि प्रदीप्त होती है ।
६१- आमवातारिरस — पारा एक तोला, गन्धक दो तोले, हरड तीन तोले, आँवला चार तोले, बहेड़े पाच तोले, चीते ( चित्रक ) की छाल छः तोले और सात तोले, इन सब का उत्तम चूर्ण करे, इस में अडी का तेल मिलाकर पीवे, इस से गूगुल आमवात रोग शान्त हो जाता है, परन्तु इस औषधि के ऊपर दूध का पीना तथा मूग के पदार्थों का खाना वर्जित ( मना )
है 1
१–त्रिकुटा अर्थात् सोंठ, मिर्च और पीपल, इसे त्रिकटु भी कहते हैं ॥
२ - कॉजी में सिद्ध होने कारण इस घृत को काजिक घृत कहते हैं ॥
३- अर्थात् अभि की मन्दता को मिटाता है ॥
४ - इसे पसरन भी कहते हैं जैसा कि पहिले लिख चुके हैं ॥
५- वेल, गॅभारी, पाडर, अरनी और स्योनाक, यह वृहत्पश्ञ्चमूल तथा शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, छोटी कटेरी, बडी कटेरी और गोखुरू, यह लघुपबमूल, ये दोनों मिलकर दशमूल कहा जाता है ॥