________________
चतुर्थ अध्याय ॥
५९३
कम्प, कुब्ज, सन्धिगत वात, जानु जंघा तथा हाडो की पीड़ा, गृध्रसी, हनुग्रह, ऊरुस्तम्भ, वातरक्त, विश्वाची, कोटुशीर्षक, हृदय के रोग, बवासीर, योनि और शुक्र के रोग तथा स्त्री के बंध्यापन के रोग, ये सब नष्ट होते है, यह काथ स्त्रियों को गर्भप्रदान करने में भी अद्वितीय (अपूर्व ) है ।
ये सव १९ - रास्नापञ्चक — राखा, गिलोय, अड की जड, देवदारु और सोंठ, औषध मिलाकर एक तोला लेवे, इस का पावभर जल में क्वाथ चढ़ावे, जब एक छटांक जल शेष रहे तब इसे उतार कर छान कर पीवे, इस के पीने से सन्धिगत वात, अस्थिगत वात, मज्जाश्रित वात तथा सर्वागगत आमवात, ये सब रोग शीघ्र ही दूर हो जाते है ।
२० - रास्नासप्तक --- राखा, गिलोय, अमलतास, देवदारु, गोखुरू, अड की जड़ और पुनर्नवा, ये सब मिला कर एक तोला लेकर पावभर जल में क्वाथ करे, जब छटाक भर जल शेष रहे तब उतार कर तथा उस में छः मासे सोंठ का चूर्ण डाल कर पीवे, इस काथ के पीने से जघा, ऊरु, पसवाडा, त्रिक और पीठ की पीडा शीघ्र ही दूर हो जाती है ।
२१- इस रोग में- दशमूल के काथ में पीपल के चूर्ण को डालकर पीना चाहिये । २२- हरड और सोंठ, अथवा गिलोय और सोंठ का सेवन करने से लाभ होता है । २३- चित्रक, इन्द्रजौ, पाढ, कुटकी, अतीस और हरड़, इन का चूर्ण गर्म जल के साथ पीने से आमाशय से उठा हुआ वातरोग शान्त हो जाता है ।
L
२४ - अजमोद, काली मिर्च, पीपल, बायविडंग, देवदारु, चित्रक, सतावर, सेंधा निमक और पीपरामूल, ये सब प्रत्येक चार २ तोले, सोंठ दश पल, विधायरे के वीज दश पल और हरड़ पाच, पल, इन सब को मिलाकर चूर्ण कर लेना चाहिये, पीछे सब औषधों के समान गुड़ मिला कर गोलिया बना लेना चाहिये अर्थात् प्रथम गुड़ में थोड़ा सा जल डाल कर अभिपर रखना चाहिये जब वह पतला हो जावे तब उस में चूर्ण डालकर गोलिया बाँध लेनी चौहियें, इन गोलियों के सेवन से आमवात के सब रोग, विषूचिका (हैजा ), प्रतूनी, हृद्रोग, गृध्रसी, कमर, बस्ती और गुदा की फूटन, फूटन, सूजन, देहसन्धि के रोग और वातजन्य सब रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते है, ये गोलियों क्षुधा को लगानेवाली, आरोग्यकर्ता, यौवन को स्थिर करनेवाली, वली और पलित (बालों की श्वेतता ) का नाश करनेवाली तथा अन्य भी अनेक गुणों की करनेवाली है ।
हड्डी और जङ्घा की
१- अर्थात् मिश्रित सातों पदार्थों की मात्रा एक तोला लेकर ॥
२-गुड के योग के विना यदि केवल यह चूर्ण ही गर्म जल के साथ छ मासे लिया जावे तो भी बहुत करता है |
७५