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बैनसम्प्रदायशिक्षा । साभ्यासाभ्यविचार—बो यक्ष्मा रोग उस ग्यारह लक्षणों से युफ हो, भगवा छ क्षणों से वा तीन लक्षणों (पर सांसी और रुधिर का गिरना इन तीन सायों) से युक्त हो उस को असाप्प समझना राहिये ।
हा इस में इतनी विशेपसा अवश्य है कि उक्त तीनों प्रकार फा (म्पारर यक्षों माला, छ क्षणों नाला सया तीन लक्षणों वाग) यक्ष्मा मांस भौर रुपिर से पीण मनुप्पा असाम सथा वस्वान् पुरुप का फप्टसाध्य समझा जाता है।
इस के सिपाय-बिस यक्ष्मा रोग में रोगी भत्यन्त मोबन करने पर भी क्षीण होना चावे, भतीसार होते हो, सब मंग सूज गये हों तमा रोगी फा पेट सूख गया हो यह यक्ष्मा भी मसाध्य समझा जाता है।
घिफिस्सा -१-जिस रोगी के दोप मत्पन्स पढ़ रहे हों तथा यो रोगी, समान् हो ऐसे यक्ष्मा रोगवा के प्रथम पमन और विरेपन भावि पाँच कर्म करने चाहिन
१-बसाप्प मर्यात् बिम्सिा से भी म मिटने याम्म । २-साम मर्धत् सरिका से मिटने नाम । १-मन परेषन मनुवासम निसन मोर नाबम (मस), ये पांच मै पावन में से बात मारिस पम पूर्ण कर पुरे वापि यहाँ पर इन पॉपी को प्रतिवार पूर्वक पनन परत सब से परिम कर्म गमग मात्र उम्दी कराना है, इस सामिपि -परव या वर्षा भर बसम्त में यमन कराना चाहिये । घमन के योग्य प्राणी-पम्प, मिस फ धराए हमासात फरोगा से पारित से मिनमो नमन राना हितोतया प्ये पीर पित्त वाम में इन धब पमम राना पारिये पमम योग्य पेग-विषयोप षसम्वी बामरोग मम्मामि सागर भगुर परोप विसर्प प्रमेह भगीर्ष भ्रम निदानमा भपनी वासी भास पीनस माग मपी पर सम्मार, रबादासार बार पाठ और भोण्म पाना न प पाना भपिथि पमम्म मसार पित्तपर रोग मोरोम भार बापि म रोमों में बमन रामा पारिने बमन कराना मिपेष-विमिररोगी गुस्मरोमी उपरोपी रुप ममम्व रख पर्मनी की भसम्त स्पून र धन भरि पार पाम्म मप से पारित वाण म्प माप सि जिसपणे बापत ठा कर्मचरित पाप और पावसम्म ऐप युग इन पो सम्म गरी मीनता से होना, इस " इस रापपोभीर पनरोगी कृमिरोपी परने ४ विस प्र पाठ शपया पे भीम सेम्पषित भोर से ििार से दुपित । सप बमन पराना चाहिये जो प म्याप्त ८न को मार पामि र मन पराना परिपे पनि पु¥मार पुत्र प्रकार मन से सने गायक मन परान यमागू Vार मा परी भावि पराप रिग र पमम राना पाहिम पर
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