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चतुर्थ अध्याय ॥
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ऊपर कहे हुए कार्य के लिये कोपेवा, कबाबचीनी और चन्दन का तेल, ये मुख्य पदार्थ है, इस लिये इन को उपयोग में लाना चाहिये ।
१४ - आइल कोपेवा ४ ड्राम, आइल क्युबब २ ड्राम, म्युसिलेज अकासिया २ औस, आइलसिनेमान १५ बूँद और पानी १५ औस, पहिले पानी के सिवाय चारो औषधियों को मिला कर पीछे उस में पानी मिलावें तथा दिन में तीन बार खाना खाने के पीछे एक एक औस पीवें, इस दवा के थोड़े दिनों तक पीने से रसी (मवाद) का आना बंद हो जावेगा ।
१५ - यदि ऊपर लिखी हुई दवा से रसी का आना बंद हो तो कबाबचीनी की वूकी ( बुरकी) 2 से 3 तोला तथा कोपेवा वालसाम ४० से ६० मिनिम, इन दोनों को एकत्र करके (मिला कर ) उस के दो भाग कर लेने चाहियें तथा एक भाग सवेरे और एक भाग शाम को घृत, मिश्री, अथवा शहद के साथ चाटना चाहिये ।
अथवा केवल ( अकेली ) कवावचीनी की वूकी ( बुरकी अथवा चूर्ण) दो दुअन्नीभर दिन में तीन वार घृत तथा मिश्री के साथ खाने से भी फायदा होता है ।
इस के सिवाय—चन्दन का तेल भी सुजाख पर बहुत अच्छा असर करता है तथा वह अग्रेजी वालसाम कोपेवा के समान गुणकारी ( फायदेमन्द ) समझा जाता है ।
१६- लीकर पोटास ३ ड्राम, सन्दल ( चन्दन ) का तेल ३ ड्राम, टिंकचर आरेनशियाई ९ औंस तथा पानी १६ औस, पहिले पानी के सिवाय शेप तीनों औषधियों को मिला कर पीछे पानी को मिलाना चाहिये तथा दिन में तीन वार खाना खाने के पीछे इसे एक एक औस पीना चाहिये ।
१७ - दश से बीस मिनिम ( बूँद ) तक चन्दन के तेल को मिश्री में, अथवा बतासे में डाल कर सवेरे और शाम को अर्थात् दिन में दो वार कुछ दिन तक लेना चाहिये, यह ( चन्दन का तेल ) बहुत अच्छा असर करता है ।
१८- पिचकारी -- जिस समय ऊपर कही हुई दवाइया ली जाती हैं उस समय इन के साथ इन्द्रिय के भीतर पिचकारी के लगाने का भी क्रम अवश्य होना चाहिये, क्योंकि - ऐसा होने से विशेष फायदा होता है ।
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पिचकारी के लगाने की साधारण रीति यही है कि - काच की पिचकारी को दवा के पानी से भर कर उस (पिचकारी ) के मुख को इन्द्रिय में डाल देना चाहिये तथा एक हाथ से इन्द्रिय को और दूसरे हाथ से पिचकारी को दबाना चाहिये, जब पिचकारी खाली होजावे (पिचकारी का पानी इन्द्रिय के भीतर चला जावे ) तब उस को शीघ्र ही बाहर निकाल लेना चाहिये और दवा को थोड़ी देर तक भीतर ही रहने देना चाहिये अर्थात् इन्द्रिय को थोड़ी देर तक दवाये रहना चाहिये कि जिस से दवा बाहर न निकल