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चतुर्थ अध्याय ॥
५७१ समान मुख का खाद खट्टा आदि नहीं रहता है, परन्तु शोकादि से उत्पन्न अरुचि में केवल भोजन पर ही अनिच्छा होती है ।
सन्निपातजन्य अरुचि में-अन्न पर रुचि का न होना तथा मुख में अनेक रसों का प्रतीत होना, इत्यादि चिह्न होते हैं।
चिकित्सा-१-भोजन के प्रथम सेंधा निमक मिला कर अदरख को खाना चाहिये, इस के खाने से अन्न पर रुचि, अग्नि का दीपन तथा जीभ और कण्ठ की शुद्धि होती है।
२-अदरख के रस में शहद डाल कर पीने से अरुचि, श्वास, खासी, जुखाम और कफ का नाश होता है।
३-पकी हुई इमली और सफेद बूरा, इन दोनों को शीतल जल में मिला कर छान लेना चाहिये, फिर उस में छोटी इलायची, कपूर और काली मिर्च का चूर्ण डाल कर पानक तैयार करना चाहिये, इस पानक के कुरलो को वारंवार मुख में रखना चाहिये, इस से अरुचि और पित्त का नाश होता है ।
४-राई, भुना हुआ जीरा, भुनी हुई हींग, सोठ, सेंधा निमक और गाय का दही, इन सब को छान कर इस का सेवन करना चाहिये, यह तत्काल रुचि को उत्पन्न करती है तथा जठराग्नि को बढ़ाती है। ___५-इमली, गुड़ का जल, दालचीनी, छोटी इलायची और काली मिर्च, इन सव को मिला कर मुख में कवल को रखना चाहिये, इस से अरुचि शीघ्र ही दूर हो जाती है।
६-यवानी खाण्डव-अजवायन, इमली, सोंठ, अमलवेत, अनार और खट्टे वेर, ये सव प्रत्येक एक एक तोला, धनिया, संचर निमक, जीरा और दालचीनी, प्रत्येक छः २ मासे, पीपल १०० नग, काली मिर्च २०० नग और सफेद बूरा १६ तोले, इन सब को एकत्र कर चूर्ण बना लेना चाहिये तथा इस में से थोडे से चूर्ण को क्रम २ से गले के नीचे उतारना चाहिये, इस के सेवन से हृदय की पीडा, पसवाडे का दर्द, विबंध, अफरा, खासी, श्वास, सग्रहणी और बवासीर दूर होती है, मुख और जीभ की शुद्धि तथा अन्न पर रुचि होती है।
७-अनारदाना दो पल, सफेद वूरा तीन पल, दालचीनी, पत्रज और छोटी इलायची, ये सब मिला कर एक पल, इन सब का चूर्ण कर सेवन करने से अरुचि का नाश होता है, जठराग्नि का दीपन और अन्न का पाचन, होता है एवं पीनस, खासी तथा ज्वरका नाश होता है ।