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चतुर्थ अध्याय ।।
५७३ चिकित्सा-१-आमाशय (होजरी) के उत्क्लेश के होने से छर्दि होती है, इस लिये इस रोग में प्रथम लघन करना चाहिये ।
२-यदि इस रोग में दोपों की प्रबलता हो तो कफपित्तनाशक विरेचन (जुलाब ) लेना चाहिये। ___३-वातजन्य छर्दि रोग में जल को दूध में मिला कर औटाना चाहिये, जब जल जल कर केवल दूध शेप रह जावे तव उसे पीना चाहिये ।
४-भूमिऑवले के यूप में घी और सेंधे निमक को मिला कर पीना चाहिये ।
५-गिलोय, त्रिफला, नीम की छाल और पटोलपत्र के काथ में शहद मिला कर पीने से छर्दि दूर हो जाती है।
६-छोटी हरड़ के चूर्ण में शहद को मिला कर चाटने से दस्त के द्वारा दोषों के निकल जाने से शीघ्र ही छर्दि मिट जाती है । ___७-वायविडग, त्रिफला और सौंठ, इन के चूर्ण को शहद में मिला कर चाटना चाहिये।
८-वायविडग, केवटी, मोथा और सोंठ, इन के चूर्ण का सेवन करने से कफ की छर्दि मिट जाती है।
९-ऑवले, खील और मिश्री, ये सब एक पल लेकर तथा पीस कर पाव भर जल में छान लेना चाहिये, पीछे उस में एक पल शहद को डाल कर पुन कपडे से छान लेना चाहिये, पीछे इस का सेवन करना चाहिये, इस का सेवन करने से त्रिदोप से उत्पन्न हुई छर्दि शीघ्र ही नष्ट हो जाती है।
१०-गिलोय के हिम में शहद डाल कर पीने से त्रिदोष की कठिन छर्दि भी मिट जाती है। ११-पित्तपापडे के काथ में शहद डाल कर पीने से पित्त की छर्दि मिट जाती है ।
१२-एलादि चूर्ण-इलायची, लौग, नागकेशर, बेरै की गुठली, खील, प्रियङ्गु, मोथा, चन्दन और पीपल, इन सब औषधियों को समान भाग लेकर तथा इन का चूर्ण कर मिनी और शहद को मिला कर उसे चाटना चाहिये इस से कफ, वायु और पित्त की छर्दि मिट जाती है।
१३-सूखे हुए पीपल के बक्कल (छाल) को लेकर तथा उस को जला कर राख कर लेना चाहिये, उस राख को किसी पात्र में जल डाल कर घोल देना चाहिये, थोड़ी देर में उस के नितरे हुए जल को लेकर छान लेना चाहिये, इस जल के पीने से छर्दि और अरुचि शीघ्र ही मिट जाती है ।
१-हिम की विधि औषधप्रयोग वर्णन नामक प्रकरण में पहिले लिख चुके हैं। २-वेर की अर्थात् झडवेरी के बेर की ॥ ३-भूने हुए वान (जिन में से चावल निकलते हैं ) ॥