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जैनसम्प्रदामशिक्षा
है, कभी २ इन्द्रिय में से छोड़ भी गिरता है, कभी २ इस रोग में रात्रि के समय इन्द्रिय जागृत (चैतन्य) होती हे और उस समय बांकी (टेशी) उस के कारण रोगी के असम ( न सहने योग्य अर्थात् बहुत ही
हाकर रहती है सभा पीड़ा होती है, कभी २
अवस्था में अति
मि वाचक प्रजा! भाप ने देखा होगा कि सड़क में भी दस वर्ष की श्री जो बुद्धिमान था जिस पागा ) पर मुर्ती भी तथा पेहरे पर बार कांति प विना निवाह आदि किसी हेतु कुछ समय के बाद मठीन पदव और का ओर हो बा है, इसका क्या कारण है? इसका कारण नहीं पापाचरण की विभूतियों वह अप मूद्धि के निगम से ही गुप्त न रहकर उसके चहरे आदि भी पर जाता है।
बहुत से व्यभिचारी और दुराचारी जन संसार को दिखाने लिये अनेक कार से रहकर अपने प्रसिद्ध है तथा नाके भार महान को भी उन क कप पकन उन्हें नई परन्तु पाकर इस बात का विषय र पहरा ही उस ब्रह्मभन की गवाही दे दा बस सोय जिन को उग यदि उनका राजन की गवाही न द तो आप उन्हें चारी कभी न समते । (प्रस) या अपन इम्प में इसके दावों को है इसका एक भी मानक यह संसार विवि
पारसे
करना
कम
में सब
एक जो मनुष्य है उन
मनुष्य होता शिवारी (भ भावार बा ) भी होत है तथा दुराचारी भी दक्षत है, संसार की मायादी यही विचित्र इस संसार में सब एकस नहीं है और ऐसा न दूसरे मान पहुंचता है जब इसका (द्वान से वीर्यपात करने के जब कुछ हानि पहुँचती है तब बेदों से मम पहुँका ६, भब्ध सोपने की है हिदि सही करा मामा भीर नीरोग बन जाने को बचारे विद्वान् किरा से उपदेश र तारक विकला अबद है कि इस संसार में सदा से ही विक्ि भाई भर भी जागी इमो (दान) (मादि९) नचाहिने (उत्तर) ग्रह मारेकरी आपकी बाडितुम काम करन सा नहीं भाई भार तुम भीमादिका भवनका मन इन प्रथ में इन प्रकार की बाकि है उन से हमारा प्रयोजन इन दो प्रकर
प्रथि
की
गुरिया उनसे बचान भरने का दास धरता
है, हमने उपदान में बना स
की मून और सेनानामनुमात्र अर कोबार में मनु
नाम का किराती बन ग
में बन र