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चैनसम्प्रदामशिक्षा ॥
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चेप के मविष्ट ( वास्तिक ) हो जाने से उस जखम के स्थान में टोकी पड़गई है और पीछे से उसके शरीर में भी गर्मी फूट निफली है, यह तो बहुत से खोगों ने देखा ही होगा किवीता का टीका लगाते समय उस की गर्मी का पेप एक मानक से दूसरे बालक के लग जाता है, इस से सिद्ध है कि यदि गर्मीमाला खड़का नीरोग धाम का भी दूष पीये तो उस पाप के भी गर्मीका रोग हो जाता है तथा गर्मीवासी नीरोग भी हो तो भी उस घाम का दूध पीने से उस लड़के के भी गर्मीका रोग हो जाता है, तात्पर्य यह है कि इस रीति से इस गर्मी देवी की मसावी एक दूसरे के द्वारा पैंटती है' ।
पाय हो और
गर्मी का रोग प्रायः वारसा में जाता है। इस सरह व्यभिचार, रोगी के रुधिर के रस काप और बारसा से यह रोग होता है' ।
यद्यपि यह भाव तो निर्विवाद है कि फठिन भाँदी के मकट होती है परन्तु कई एक डाक्टरों के देखने में हो जाने तक अर्थात् टांकी के होने के पीछे उस के asमाग में कुछ भी कठिनता न मालूम देने पर फमी २ वरीर पर गर्मी प्रकट होने लगती है ।
कठिन चाँदी की यह सासीर है कि जब से वह टोकी उत्पन्न होती है उसी समय से उस का तल भाग तथा कोर ( किनारे का भाग) कठिन होती है, इस के समान दूसरा कोई भी भाव नहीं होता है अर्थात् सम ही घाव प्रथम से ही नरम होते हैं, वह दूसरी बात है कि- दूसरे शवों को छेड़ने से वे कदाचित् कुछ कठिन हो जायें परन्तु
मूल से दी (मारंभ से ही ) वे कठिन नहीं होते हैं ॥
होने के पीछे शरीर की गर्मी यह भी माता है कि टांकी के मरम मिटने तक उस के पास पास और भी उस नरम टांकी के होने के पीछे
इस दो प्रकार की (मृदु और कठिन ) चाँदी के सिवाम एक प्रकार की चाँदी और भी होती है जिस में उक्त दोनों मार की चौदियों का गुण मिश्रित ( मिला हुमा ) होता है", अर्थात् यह तीसरे प्रकार की भौदी व्यभिचार के पीछे शीघ्र ही दिखाई देती है और उस में से रसी निकलती है तथा थोड़े दिनों के बाद वह कठिन हो जाती है मौर मास्लिरकार वरीर पर गर्मी विस्वलाई देने लगती है ॥
कई बार तो इस मिश्रित ( मृदु और कठिन ) टांकी के चिह्न स्पष्ठ (साफ) होते हैं
१-पह कि वह रोम सामक है इस विर्य मात्र से ही एक से दूसरे में
है
अर्थात् यह रोग गम में भी पहुँच कर बाकी उत्पत्ति के साथ ही कम होता है। ३- यह है कि उच्च व्यभिचार आदि की कारण इस रोग की उत्पत्ति है ४- निर्विवाद अर्थात् प्रस्थान मानों के द्वारा अनुभव ि
५- भत्रे मारी भी में दोनों प्रकार को चादी के दिने हुए होते है ६- और टिम भभवास ॥