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चतुर्थ अध्याय ॥
५४९ अधिक निकले उतना ही विशेष फायदा होता है, क्योंकि थूक के द्वारा गर्मी निकल जाती है, परन्तु उनका ऐसा समझना बहुत ही भूल की बात है, क्योंकि लाभ तब विशेष होता है जब कि पार से मुखपाक तो कम हो अर्थात् थूक में थोडी सी विशेषता ( अघिकता) हो परन्तु वह बहुत दिनों तक बनी रहे', किन्तु मुखपाक विशेष ( अधिक ) हो
और वह थोड़े ही दिनों तक रहे उस से बहुत कम फायदा होता है। ___ बहुधा यह भी देखा गया है कि---मुखपाक के विना उत्पन्न किये भी युक्ति से दिया हुआ पारा पूरा २ (पूरे तौर से ) फायदा करता है, इस लिये अधिक मुखपाक के होने से अर्थात् अधिक थूक के बहने ही से लाभ होता है यह विचार विलकुल ही भ्रमयुक्त (बहम से भरा हुआ ) है। __७-डाक्टर हचिनसन की यह सम्मति ( राय ) है कि-- पारे की दवा को एक दो मास तक थोड़ी २ बराबर जारी रखना चाहिये, क्योंकि उन का यह कथन है कि" उपदश पर पारद (पारे) को जल्दी देओ, बहुत दिनोंतक उस का देना जारी रक्खो और मुखपाक को उत्पन्न मत करो" इत्यादि ।
८-गर्मीवाले रोगी को पारा देने की चार रीतिया है- उन में से प्रथम रीति यह है कि- मुख के द्वारा पारा पेट में दिया ( पहुँचाया ) जाता है, दूसरी रीति यह है किपारे का धुआँ अथवा भाफ दी जाती है, तीसरी रीति यह है कि- पारे की दवा न तो पेट में खानी पड़ती है और न उसका धुआँ वा भाफ ही लेनी पड़ती है किन्तु केवल पारा जॉघ के मूल में तथा कॉख में लगाया जाता है और चौथी रीति यह है किसप्ताह (हफ्ते ) में तीन वार त्वचा (चमड़ी) में पिचकारी लगाई जाती है।
इस प्रकार पहिले जब गर्मी के दूसरे विभाग के चिह्न मालूम हो तब अथवा उस के कुछ पहिले इन चारों रीतियों में से किसी रीति से यदि युक्ति के साथ पारे की दवा का सेवन कराया जावे तो उपदश के लिये इस के समान दूसरी कोई दवा नहीं है, परन्तु पारे सम्बधी दवा किसी कुशल (चतुर ) वैद्य वा डाक्टर से ही लेनी चाहिये अर्थात् मूर्ख वैद्यों से यह दवा कभी नहीं लेनी चाहिये। (प्रश्न) सर्व साधारण को यह बात कैसे मालूम हो सकती है कि- यह कुशल वैद्य है अथवा मूर्ख वैद्य है ? (उत्तर) जिस प्रकार सर्व साधारण लोग सोने, चाँदी, जबाहिरात तथा दूसरी भी अनेक अस्तुओं की
१-थूक में थोडी विशेषता होकर बहुत दिनोंतक बनी रहने से वडा लाभ होता है अर्थात् रोगी को खाने पीने आदि की तकलीफ भी नहीं होती है तथा काम भी बन जाता है ।
२-ऐसा करने से रोगी को विशेप कष्ट न होकर फायदा हो जाता है। ३-दूसरे विभाग (दूसरे दर्जे) के चिछ ज्वर मादि, जिन को पहिले लिख चुके हैं।
४-क्योंकि मूर्ख वैद्यों से पारे की दवा के लेने से कभी २ महा भयङ्कर (बड़ा खतरनाक) परिणाम हो। जाता है।