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चतुर्थ अध्याय ।।
५४७ कई एक भागों में होता है तथा इस परिवर्तन से भी बहुत हानि पहुँचती है अर्थात् यदि यह परिवर्तन फेफसे में होता है तो उस के कारण क्षयरोग की उत्पत्ति हो जाती है, यदि मगज में होता है तो उस के कारण मस्तकशूल ( माथे में दर्द), वाय, उन्मत्तता (दीवानापन) और लकवा आदि अनेक भयंकर रोगों का उदय हो जाता है, कभी २ हाड़ों के सड़ने का प्रारम्भ होता है-अर्थात् पैरों के, हाथो के तथा मस्तक के हाड़ ऊपर से सड़ने लगते हैं, नाक भी सड कर झरने लगती है, इस से कभी २ हाड़ों में इतना बड़ा विगाड़ हो जाता है कि- उस अवयव को कटवाना पडता है', आँख के दर्पण में उपदंश के कारण होनेवाले परिवर्तन ( फेरफार ) से दृष्टि का नाश हो जाता है तथा उपदश के कारण वृषणों ( अडकोशों) की वृद्धि भी हो जाती है, जिस को उपदशीय वृषणवृद्धि कहते है।
चिकित्सा -१-उपदंश रोग की मुख्य (खास ) दवा पारा है इस लिये पारे से युक्त किसी औपधि को युक्ति के साथ देने से उपदंश का रोग कम हो जाता है तथा मिट भी जाता है।
२-पारे से उतर कर ( दूसरे दर्जे पर ) आयोडाइड आफ पोटाश्यम नामक अंग्रेजी दवा है, अर्थात् यह दवा भी इस रोग में बहुत उपयोगी ( फायदेमंद ) है, यद्यपि इस रोग को समूल (जड़ से ) नष्ट करने की शक्ति इस (दवा) में नहीं है तथापि अधिकाश में यह इस रोग को हटाती है तथा शरीर में शान्ति को उत्पन्न करती है।
३-इन दो दवाइयों के सिवायें जिन दवाइयों से लोहू सुधरे, जठरामि (पेट की अमि) प्रदीप्त (प्रज्वलित अर्थात् तेज़ ) हो तथा शरीर का सुधार हो ऐसी दवाइया इस रोग पर अच्छा असर करती हैं, जैसे कि---सारसापरेला और नाइट्रो म्यूरियाटक एसिड इत्यादि ।
४-इन ऊपर कही हुई दवाइयों को कव देना चाहिये, कैसे देना चाहिये तथा कितने दिनों तक देना चाहिये, इत्यादि बातों का निश्चय योग्य वैद्यों वा डाक्टरों को रोगी की स्थिति ( हालत ) को जाँच कर स्वयं (खुद) ही कर लेना चाहिये।
५-पारे की साधारण तथा वर्तमान में मिल सकने वाली दवाइया रसकपूर, क्यालोमेल, चाक, पारे का मिश्रण तथा पारे का मल्हम है।
१-यदि उस अवयव को न कटवाया जावे तो वह विकृत अवयव दूसरे अवयव को भी विगाड देता है। २-अर्थात् उपदश से हुई धृपणों की वृद्धि । ३-अर्थात् यह दवा उस के वेग को अवश्य कम कर देती है ॥ ४-इन दो दवाइयों के सिवाय अर्थात् पारा और आयोडाइड आफ पोटाश्यम के सिवाय ॥
५-क्योंकि देश, काल, प्रकृति और स्थिति के अनुसार मात्रा, विधि, अनुपान और समय आदि वातों में परिवर्तन करना पड़ता है।