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चतुर्थ अध्याय ॥
५४५ रोग प्रकट होता है, इस रोग से त्वचा के ऊपर छोटी बडी सब प्रकार की पिटिकायें (फुसियें ) भी हो जाती है।
उपदश सम्बधी त्वयोग (त्वचा का रोग ) ताम्रवर्ण (तावे के रग के समान रॅगवाला) तथा गोलाकार (गोल शकल का) होता है और वह शरीर के दोनो तरफ प्रायः समान (एक सा ) ही होता है तथा उस के मिट जाने के पीछे उस के काले दाग पड कर रह जाते हैं।
२-इस रोग के कारण कभी २ केश (वाल ) भी नि.सत्त्व (निर्बल ) होकर गिर पड़ते है, अर्थात् मूछ दाढ़ी और मस्तक पर से केश विलकुल जाते रहते है । ____३-नख का भाग पक कर उस में से रसी निकला करती है, नख निकल जाता है
और उस स्थान में चाँदी पड़ जाती है। ___-पहिले कह चुके है कि गर्मी के प्रारम्भ में मुख आता है" ( मुखपाक हो जाता है) तथा उस के साथ में अथवा पीछे से गले के भीतर चॉदे पड़ जाते हैं, मसूडे सूज जाते है, जीभ, ओष्ठ (ओठ वा होठ) तथा मुख के किसी भाग में चॉदे हो जाते है और उन पर बड़ी २ पिटिकायें भी हो जातीहैं, इन के सिवाय लारीक्ष अर्थात् स्वर (आवाज) की नली सूज जाती है अथवा उस के ऊपर चॉदियां पड़ जाती है, गर्मी के कारण जब ये ऊपर लिखे हुए मुख सम्बंधी रोग हो जाते हैं उस समय रोग के भयकर चिह्न समझे जाते है, क्योंकि इन रोगों के होने से श्वास लेने का मार्ग सँकुचित (सॅकड़ा) हो जाता है तथा कभी २ नाक भी भीतर से सड़ जाती है, उस का पडदा फूट जाता है और वह बाहर से भी झर झर के गिरने लगती है, ताल में छिद्र (छेद) होकर नाक में मार्ग हो जाता है कि जिस से खाते समय ही खुराक और पीते समय ही पानी नाक में होकर निकल जाता है तथा जीम और उस का पड़त भी झर झर के गिर जाता है।
५-हाड़ों पर का पडत सूज जाता है, उस पर मोटा टेकरा हो जाता है तथा उस में या तो स्वय ही ( अपने आप ही) बहुत दर्द होता है अथवा केवल दवाने से वह दर्द करता है और उस में रात्रि के समय विशेष वेदना ( अधिक पीड़ा) होती है कि जिस
१-दोनों तरफ अर्थात् दाहिनी और वाई ओर ॥ २-अर्थात् उस के कारण पडे हुए काले दाग नहीं मिटते हैं ।
३-तात्पर्य यह है कि रोग के सवव से पूर्व के वाल नि सब हो कर गिर जाते हैं और पीछे जो निकलते हैं ये भी निर्वल होने के कारण वढने से पूर्व ही गिर जाते हैं।
४-मुख आता है अर्थात् मुख में छाले भादि पड जाते हैं ।। ५-क्योकि श्वास के मार्ग के बहुत से स्थान को उक रोग घेर लेते हैं। ६-अर्थात् नि सत्वता के द्वारा योडे २ भाग से गिरने लगती है। ७. अर्थात् खान पान उसी समय ( तालु में पहुँचते ही) नाक के मार्ग से बाहर निकल जाता है ॥