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चतुर्थ अध्याय ॥
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दोनों वक्षणों में वद हो जाती है अर्थात् एक अथवा दो मोटी गांठें हो जाती है परन्तु उस में दर्द थोड़ा होता है और वह पकती नहीं है, परन्तु यदि वद होने के पीछे वहुत चला फिरा जावे अथवा पैरों से किसी दूसरे प्रकार का परिश्रम करना पडे तो कदाचित् यह गांठ भी पक जाती है' ।
चिकित्सा - १ - इस चॉदी के ऊपर आयोडोफार्म, क्यालोमेल, रसकपूर का पानीअथवा लाल मल्हम चुपड़ना चाहिये, ऐसा करने से टाकी शीघ्र ही मिट जावेगी, यद्यपि इस टाकी के मिटाने में विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ता है परन्तु इस टाकी से जो शरीरपर गर्मी हो जाती है तथा खून में विगाड़ हो जाता है उस का यथोचित ( ठीक २ ) उपाय करने की बहुत ही आवश्यकता पडती है अर्थात् उस के लिये विशेष परिश्रम करना पड़ता है ।
२- रसकपूर, मुरदासीग, कत्था, शखजीरा और माजूफल, इन प्रत्येक का एक एक तोला, त्रिफले की राख दो तोले तथा धोया हुआ घृर्त दश तोले, इन सब दवाइयों को मिला कर चाँदी तथा उपदश के दूसरे किसी क्षत पर लगाने से वह मिट जाता है । ३ - त्रिफले की राख को घृत में मिला कर तथा उस में थोडा सा मोरथोथा पीस कर मिला कर चाँदी पर लगाना चाहिये ।
४ - ऊपर कहे हुए दोनों नुसखों में से चाहे जिस को काम में लाना चाहिये परन्तु यह स्मरण रहे कि - पहिले त्रिफले के तथा नीव के पत्तों के जल से चॉदी को धो कर फिर उस पर दवा को लगाना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से जल्दी आराम होता है |
गर्मी द्वितीयोपदंश (सीफीलीस ) का वर्णन ||
कठिन चॉदी के दीखने के पीछे बहुत समय के बाद शरीर के कई भागों पर जिस का असर मालूम होता है उस को गर्मी कहते है ।
यद्यपि यह रोग मुख्यतया ( खासकर ) व्यभिचार से ही होता है परन्तु कभी २ यह किसी दूसरे कारण से भी हो जाता है, जैसे- इसका चेप लग जाने से भी यह रोग हो जाता है, क्योंकि प्रायः देखा गया है कि -- गर्मी वाले रोगी के शरीरपर किसी भाग के काटने आदि का काम करते हुए किसी २ डाक्टर के भी जखम होगया है और उस के
१- तात्पर्य यह है कि वह गाँठ विना कारण नहीं पकती है |
२- क्योंकि यह मृदु होती हैं ॥
३ - उस रक्तविकार आदि की चिकित्सा किसी कुशल वैद्य वा डाक्टर से करानी चाहिये ॥
४- घृत के धोने का नियम प्राय सौ वार का है, हा फिर यह भी है कि जितनी ही वार अधिक धोया जावे उतना ही वह लाभदायक होता है ॥