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चैनसम्प्रवामशिक्षा ॥ शोष (सूजन ) हो पाता है, जिस से वह पात लाल हो जाता है पीछ उस में भो और गोल असम हो जाते हैं तथा उस में से पहिले खून मोर पीछे पीप गिरता है, इस प्रकार का तीक्ष्ण (वेब पा सस्त ) मरोड़ा अब तीन वा चार षठवाडेतक बना रहता है तन वह पुराना गिना जाता है, पुराना मरोड़ा वर्पोतक घनता (ठहरवा) है तथा वन इस का मन्छा भौर भोग्स (मुनासिन) इगन होता है न ही यह माता है, इसी पुराने मरोड़े को संग्रहणी कहते हैं पूरे पथ्य और गोम्प पवा के न मिग्ने से इस रोग से हमारों ही पादमी मर जाते हैं।
चिकित्सा-इस रोग की चिकित्सा करने से प्रथम यह देखना चाहिये कि-मौतों में सूजन है या नहीं, इस की परीक्षा पेट के दबाने से हो सकती है मर्मात् निस जगह पर पनाने से दर्द मावम पड़े उस बगह सूमन का होना चानना चाहिम', मदि सूबन मानम हो तो पहिछे उस की चिकित्सा करनी चाहिये, सूबन के रिसे यह विकिस्सा उत्तम है कि-बिस बगह पर दबाने से दर्द मातम परे उस बगह राई का पगप्टर (पलस्तर ) लगाना चाहिये तमा यदि रोगी सह सफे तो उस जगह पर योक लगाना चाहिये और पीछे गर्म पानी से सेक करना चाहिये तवा पससी की पोस्टिस म्गानी चाहिये, ऐसी अवस्था में रोगी को सान नहीं करना चाहिये मोर न टी हरा में माहर निकलना चाहिये किन्तु निलोनेपर ही सोते रहना पाहिये, भाँतों में से मठ से मरे हुए मैट को निकालने के लिये छ मासे छोटी हररों का भयमा सौंठ की उकामी में मंडी में तेर फा जुगल देना चाहिये, स्मोकि माम प्रारमारखा में मरोड़ा इस प्रकार के जुगर से ही मिट जाता है मर्यात् पेट में से मैन से मुफ मन निफळ पाठारे, दस साफ होने माता है तपा पेट की ऐंठन मौर वारंवार वन की हायत मिट जाती है।
यह भी स्मरण रहे कि मरोड़ेबा को परीके सेट के सिवाय दूसरा भारी जुलत कमी नहीं देना चाहिये, यदि स्वाचित किसी कारण से मंडी के तेल का अगव न देना
-मात् पुरान्य मरोग से पानेपर एपित हरे पठामि प्राणी माम म्टी एम ने भी एपित कर देवी (मनिपराम्प में मानी पा पापी प्रवे)
-पोल सूमम के स्थान में ही मार पड़ने से दर्द ऐ समता है बम्पप (समम न ऐनेपर) रगामे से पर ऐसाt.
कि पूरन पिस्सिा ऐ पाने से भी मिसिहारा सूचनमरत हो पाने से व बरम पर सोभीर मौतोमरम पर पाने से मरोगमिरे विमिस्सा से श्रीघ होसम पहुँच
- मारमारियाने समय में माम पाने से भषमा पीलापने से किस पेम सपप ऐसद र सपा भी पूरन में भी मेमा सिमर ऐजाता किया मरो बारमा पारने मामातीमये एमोबपा में मान भारिन परापान रणय पारि।