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जनसम्प्रदायशिक्षा । हो माता है, परन् पिसी २२ वह नई सम दिन रहता है तथा विधी २ समम भषिक हो जाता है।
कभी २ यह आपाधीशी फा रोग भीग से भी हो पाया है तथा पारमार मभरे रहने से, मदुत दिनों तक पपे को धूप पिमने से तथा पातुएम में अधिक सून से पाने से मनोर (नाठामत) मिमां के भी यह रोग हो जाता है।
लक्षण-स रोग में रोगी को अनेक काट रहे हैं अभए रोगी माया से ही सिर का दन रिये सुप उठता है, उस से कुछ भी साया नहीं जाता है, घिर पास्ता है, मोग्ना पासना अच्छा नहीं गया है, पेदा फीका रहता है, मास के किनारे सं वित होते है, माण फा सहन नहीं होता है, मुसफ आदि देसा नहीं पाता है तथा तिर गम रहता है।
पिफिरसा-१-यह रोग शीतल उपचारा से प्रायः शान्त हो जाता है, इस लिये यथासक्य (जहाँ धफ हो सके) शीतल उपचार दी करने चादिय ।
२-पहिरे पर जुई कि मह रोग मलेरिया की विपेसी दमासे उत्पन दाता इस लिये इस राग में किनाइन का सेपन गभवामक (फामदमन्द) , फिनाइन की पार प्रेम की गापा धीन २ पटे बाद पेनी पाठिये था मदि दमा की करनी हो यो। जुमान देना चाहिये ।
३-दोनरी, लीपैर धपा भांता ग फछ विषमर दो मा वस्त्र को प्रा गने पाग सपा मुश्किारक दया देनी पाहिये ।
-पर्धमान समय में पास्यपियाह (जेटी भयम्मा में शादी) भरण मियों के माया प्रदर रोग हो जाता है समा उससे उन अवर निर्म: (मागाव) हो जाता है भीर उसी निम्ता के पारण माया उन यह भामाशीशी म रोग भी दी जावा है, इस पि मिया के इस रोग की निरिसा करने से पूर यमासम्म उनी निस्ता मे मिटामा भादिये, क्योकि निम्ता के मिटने से पह रोग मयं दी मात दो बारेगा।
५-पदिसे पर पुरे हि-पह रोग धीवर उपधारो से शान्त होगदे, इस लिसे इस सचीवर ही इसान करमा माहिये, पाकिधीवस इगम इस रोग में धीमी फायदा करता है।
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