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चतुर्थ अध्याय ॥
५१५ रोगी वालक, बुड्ढा, अथवा अशक्त ( नाताकत ) हो तथा अधिक दस्तों को न सह सकता हो तो आम के दस्तो को भी एकदम रोक देना चाहिये।
१-इस रोग की सब से अच्छी चिकित्सा लंघन है परन्तु पित्तातीसार तथा रक्तातीसार में लंघन नही कराना चाहिये, इन के सिवाय शेष अतीसारों में उचित लघन कराने से रोगी को प्यास बहुत लगती है, उस को मिटाने के लिये धनियां तथा बाला को उकाल कर वह पानी ठढा कर पिलाना चाहिये, अथवा धनियां, सोंठ, मोथा और पित्तपापड़े का तथा बाला का जल पिलाना चाहिये ।
२-यदि अजीर्ण तथा आम का दस्त होता हो तो लंघन कराने के पीछे रोगी को प्रवाही तथा हलका भोजन देना चाहिये तथा आम को पचानेवाला, दीपन ( अग्नि को प्रदीप्त करनेवाला), पाचन ( मल और अन्न को पचानेवाला) और स्तम्भन (मल को रोकनेवाला ) औषध देना चाहिये ।
अब पृथक् २ दोषों के अनुसार पृथक् २ चिकित्सा को लिखते है:१-वातातीसार--इस में भुनी हुई भाग का चूर्ण शहद के साथ लेना चाहिये ।
अथवा चावल भर अफीम तथा केशर को शहद में लेना चाहिये तथा पथ्य में दही चावल खाना चाहिये।
२-पित्तातीसार-इस में बेल की गिरी, इन्द्रजौ, मोथा, बाला और अतिविप, इन औषधों की उकाली लेनी चाहिये, क्योंकि यह उकाली पित्त तथा आम के दस्त को शीघ्र ही मिटाती है। ___ अथवा-अतीस, कुड़ाछाल तथा इन्द्रजौ, इन का चूर्ण चावलों के घोवन में शहद डाल कर लेना चाहिये।
३-कफातीसार-इस में लङ्घन करना चाहिये तथा पाचनक्रिया करनी चाहिये । अथवा-हरड़, दारुहलदी, बच, मोथा, सोंठ और अतीस, इन औपधों का काढा पीना चाहिये।
१-वातपित्त की प्रकृतिवाला जो रोगी हो, जिस का बल और धातु क्षीण हो गये हों, जो अत्यन्त दोपों से युक्त हो और जिस को वे परिमाण दस्त हो चुके हों, ऐसे रोगी के भी आम के दस्तों को रोक देना चाहिये, ऐसे रोगियों को पाचन औषध के देने से मृत्यु हो जाती है, क्योंकि पाचन औषध के देने से और भी दस्त होने लगते हैं और रोगी उन का सहन नहीं कर सकता है, इस लिये पूर्व की अपेक्षा और भी अशक्कि (निर्वलता) वढ कर मृत्यु हो जाती है । __ २-प्रवाही अर्थात् पतले पदार्थ, जैसे-यवागू और यूष आदि । (प्रक्ष) वैद्यक ग्रन्थों मे यह लिखा है कि-शूलरोगी दो दल के अन्नों को (मूग आदि को), क्षयरोगी बीसग को, अतीसाररोगी पतले पदार्थों और खटाई को तथा ज्वररोगी उक्त सव को त्याग देवे, इस कथन से अतीसाररोगी को पतले पदार्थ तो वर्जित हैं, फिर आपने प्रवाही पदार्य देने को क्यों कहा 2 (उत्तर) पतले पदार्थों का जो अतीसार रोग में निपेध किया है वहा दूध और घृत आदि का निषेध समझना चाहिये किन्तु यूप और पेया आदि पतले पदार्यों का निपेध नहीं है।