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बैनसम्प्रदायशिक्षा । रसातीसार में खून गिरता है, इस प्रकार वस्तों के सूक्ष्म (बारीक) मेदों को समय पर यदि असीसार रोग की चिकित्सा की वाये तो उस (चिकित्सा) का प्रमान बहुत सीप होता है', पपपि इस रोग की सामान्य (सापारप) चिकित्सा मी महुत सी ओ कि सम प्रचार के दतों में उगम पहुँचाती हैं परन्तु तो भी इस बात का बान लेना अत्यान श्यक (बहुत महरी)ो कि-मिस रोग में सो दोप प्रबल हो उसी दोप के मनुसार उस. फी चिकित्सा होनी चाहिये, क्योंकि-ऐसा न होने से रोग उम्टय बढ़ बावा है ना सय न्तर (दूसरे रूप) में पहुँच जाता है, जैसे देसो ! यदि पावातीसार की पिपिरसा पिचर तीसारपर की जाये ममात् पिचातीसार में यदि गर्म मोपधि दी जाये तो दस्त न रूक र उग्य पढ़ जाता है और रकातीसार हो जाता है, इसी प्रकार दूसरे दोपों के विषय में मी समझना चाहिये। ___ मनीर्ण से उत्पन्न अतीसार में दस्त का रंग मासा मौर सफेव होता है परन्तु व बह अजीर्ण कठिन ( मस्त ) होता है तब उस से उत्सत भतीसार में देने के समान सूब पिन मावस होते हैं।
चिकित्सा -नस रोग की चिकित्सा करने से पहिले दस (मस) की परीक्षा करनी चाहिये, दस्त की परीक्षा के दो मेव -आमावीसार अर्थात् कथा वस्व और पमतीसार मोर पञ्च वस्स, इस के बानने का सहब उपाय यह है कि यदि बठ में पाउने से मत दून जाये तो उसे माम का मत अर्थात् भपक (कथा) समझना चाहिये और बस में गठने से यदि यह (मठ) पानी के उपर तिरने (उतराने) सगे सो उसे पक (पत्र हुमा) मह समझना पारिसे', यदि मस भाम र (कथा) हो अर्थात् भाम से मिम हुमा हो तो उसके एकदम बन्द करने की ओपभि नहीं देनी चाहिये, स्पोकि भाम के वस्त को एवम पन्द कर देने से कई घर के निधरों की उसधि होती है, बसे-भ• फरा, संपदणी, मस्सा, भगन्दर, सोष, पा, विकी, गोठा, प्रमेह, पेट रोग तमा ज्यर यादि, परन्तु हो इसके साथ यह बात भी भरश्य याद रखनी चाहिये सि-पदि
-सारिसमस पर पा रोगप्रमियर र सिमिया रने से बाप मतिरेरा रोपनीमही नितिपदा -पत्रिपुर-रेममुपर म म भारि में भैर मेख ये मन में
मपम हो गरेर मिसा परन्न परिये पोर ऐन प्रने से रोप । मामिति पत्र प्रवीर और सामने से उस समय है।
- सिवम और प्रेमी पापा मम दुभा भाम या Arraबा उसमें पिरण१८ मत मिममिम्प माप पिमर
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