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चतुर्थ अध्याय ॥
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कहलाते है जो कि सब आगन्तुक ज्वरो ( जिन के कारण है, इन के सिवाय हवा में उड़ते हुए जो चेपी ज्वरों के परमाणु है उनका भी इन्ही कारणों में समावेश होता है अर्थात् वे भी ज्वर कारण माने जाते है ||
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का आना, ज्वर के बाह्य कारण वे विषयमें आगे लिखा जावेगा ) के
देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के भेद ||
देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के केवल दश भेद है अर्थात् दश प्रकार का ज्वर माना जाता है, जिन के नाम ये है - वातज्वर, पित्तज्वर, कफज्वर, वातपित्तज्वर, वातकफज्वर, कफपित्तज्वर, सन्निपातज्वर, आगन्तुक ज्वर, विषमज्वर और जीर्णज्वर ॥
अंग्रेजी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के भेद ॥
अंग्रेजी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के केवल चार भेद है अर्थात् अंग्रेजी वैद्यक शास्त्र में मुख्यतया चार ही प्रकार का ज्वर माना गया है, जिन के नाम ये हैं- जारीज्वर, आन्तरज्वर, रिमिटेंट ज्वर और फूट कर निकलनेवाला ज्वर ।
इन में से प्रथम जारी ज्वर के चार भेद हैं-सादातप, टाइफस, टाईफोइड और फिर २ कर आनेवाला ।
दूसरे आन्तरज्वर के भी चार भेद हैं — ठढ देकर ( शीत लग कर ) नित्य आनेवाला, एकान्तर, तेजरा और चौथिया ।
तीसरे रिमिटेंट ज्वर का कोई भी भेद नहीं है, इसे दूसरे नाम से रिमिटेंट फीवर भी कहते हैं ।
चौथे फूट कर निकलने वालेज्वर के बारह भेद हैं- शीतला, ओरी, अचपड़ा ( आकड़ा काकड़ा ), लाल बुखार, रंगीला बुखार, रक्तवायु ( विसर्प ), हैजा वा मरी का तप, इनफ्लुएना, मोती झरा, पानी झरा, थोथी झरा और काला मूधोरों ।
इन सब ज्वरों का वर्णन क्रमानुसार आगे किया जावेगा ॥
१ - इस कारण को अग्रेजी वैद्यक में ज्वर के कारण के प्रकरण मे यद्यपि नहीं गिना है परन्तु देशी वैद्यकशास्त्र मे इस को ज्वर के कारणों में माना ही है, इस लिये ज्वर के आन्तर कारण का दूसरा मेद यही है |
२-देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ये चारों भेद विषम ज्वर के हो सकते हैं ॥
३- देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार यह (रिमिटेट ज्वर ) विषमज्वर का एक भेद सन्ततज्वर नामक हो सकता है ॥
४- अग्रेजी भाषा में ज्वर को फीवर कहते है ॥
५ - देशी वैद्यकशास्त्र में मसूरिका को क्षुद्र रोग तथा मूधोरा नाम से लिखा है ॥