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मरान में ऐसा प्रम) के विषय में सातमके नाम सीतादेवी पार्वती के उपास
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बैनसम्प्रदायशिक्षा ॥ बानते हैं कि जब से उस कटर साहम ने लोन करके पीप (रेसा) निघ्रण है तब से छालों पाये इस भयकर रोग की पीरा से मुक्ति पाने और मृत्यु से अपने मो, इस उपकार की नितनी प्रशसा की बाने मह मोड़ी है।
इस से पूर्व इस देश में माय इस रोग के होने पर अरियादेपी के उपासकों में फेरर इस की यही चिकित्सा जारी कर रस्सी थी कि-धीम्मदेवी की पूगा परते में जो कि भभी तक शीवासप्तमी (धीर सातम) के नाम से मारी है।
इस (शीता रोग) के विषय में इस पवित्र आर्यावर्त के सोगों में भौर विशेपर भी गाति में ऐसा भ्रम (माम) मुस गया है कि यह रोग किसी देवी के कोप से प्रकट होता है, इस लिये इस रोग की दवा करने से पह देवी फुल हो गाती है इस लिये इस की कोई भी एवा नहीं करनी चाहिये, यदि दगा की भी जाये तो मैग साठ और फिसमिस आदि साधारण वस्तुमों को कुतिये (कुल्हड़ी) में छक कर देना चाहिये भौर उनें मी देवी के नाम की मास्मा (भदा) रस कर देना पाहिये' इत्यादि ऐसे म्यर्थ भोर मिय्या प्रम (महम) चरण इस रोग की दवा न करने से हमारी मये इस रोग से दुस पाकर सपा सर २ कर मरते थे।
यपि यह मिथ्यामम मात्री २ से नष्ट हुमा है समापि पहुत से सानो में यह मग तक भी मपना निवास किये हुए है, इस कारण केवल यही है कि वर्षमान समय में हमारे देश की भी याति में मविपान्मार (भवानरूपी अमेरा) मधिक प्रसरित हो रहा है (फैल रहा है, ऐसे समय में सार्थी और पासपी मनों ने सियों ने मह र देवी के नाम से अपनी जीविका घमी , न केवल इतना ही मिन्सु ग्न भूतों में भपने जाल में फंसाये रसने हेतु कुछ समय से शीतसापक मादि भी बना गठे है, इस दिये उन पलों के कपट का परिणाम यहाँ की सियों में पूरे ठौर से पा रहा है कि खियो भभी तक उस सीता देवी की मानठा किया करती हैं, पो भफसो
१-भर्षात् पूर्ण समय में (प्रसपाने प्रगति प्रति ऐम सेकस रोपौ विरिया मईप पे मिर्ष धीम्यान पूरन मोर भारापर पर पे दबा रसीप्रमाप्रमोरी पठे
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बार ऐसा न हो भम्म उपयोग मिसानों ने मेरमों पौसम ममता प्रभात सिमरा रन पर भी भ्रम
माम माम्पम रयमी दुई पागरण बठ भी 30 अमर सम्बभीर पेनने से भी रखी पिकपुरोगामे मार नापत सरनिरवीरोमपन रिपो
सम्बो . ५-पर्णा गुर रिभरपा पम्मत (प ) गावे परम्नु मिया वर भी पुरुषों मरने पर वहमपान प्रपन मेरो (नयरि उन (भूत) भीम रमन।