________________
५०५
जैनसम्प्रदायसिसा ॥ पिचिफा-दस रोग में अतीसार ( यस्तों का उगना), मूळ (बेहोशी), मन (उल्टी,) प्रम (पपर का आना), दाह (जठन), शूल (पी), पदय में पीड़ा प्यास, हाथ भीर पेरों में खचातान (पाइटा), अतिमम्भा (जभाइयों का भाषिक माना), देह पा विवण (शरीर फे रंग का पद नामा), रिसता (पनी) और फम्प (फापना), ये रक्षण होवे है। __ अलसफइस रोग में आहार न तो नीचे उतरता है न उपर को जाता है। भोर न परिपक दी होता है, किन्तु भारुसी पुरुष फे समान पेट में एक जगह ही पड़ा रहता दे', इस के सिपाय इस रोग में भफरा, मल मूत्र भोर गुदा की पपन (भपानवायु) का रुकना सभा अति सूपा (प्यास फा अधिक लगाना), इत्यादि सदम भी होते हैं, इस रोग में माप मनुष्य को भविष्ट होता है।
पिलम्पिका-स रोग में किया हुआ भोजन कफ और बात से दूषित होरन तो ऊपर को जाता है और न नीचे फो ही जाता है भर्भात न मो यमन के द्वारा नि:Bहा है बार म विरेचन (वन) ही के द्वारा निरसता है, इस रोग में अठसा रोम से यह भेद है फि-मम्स रोग में वो पूल मादि पोर पीरा होती है परन्तु इस में पेसा पीड़ा नही होसी दे।
जर मिरिता भीर मल्सफ रोग में रोगी दाँत नस मोर भोट (भोठ) पते से चा, मत्य त पमन हो, शान (मा) नाश हो जाये , मय भीतर पुस जाने, सर धीण दो बारे मा सन्धियां विधित हो जाने सप इन 8ोहोन के मार रोगी मही मटा दे।
निद्रा का नाश, मन का न लगना, पम्प, म्प का हाना भोर सभी का नाम, प पार पिरिपोर उसपर ।
परितेहपुरेनिगुपा भोजन में विषमता से मनुष्य पनीत रोग हो जाता 1- तोरMAHICHIEROAarta
पोnut 1-1 भी पिसिनाने समान • E010पया.
५- 4
1411 1-14 माराम भगो . --भाग-tamil -uERT4100
. Int (IRVAN) 44. 414 danRN H Intra
.