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जैनसम्पदामशिक्षा ||
भेद (प्रकार) देशी वैद्यक शास्त्र में भजीर्ण के प्रकरण में अठराभि के विकारों का बहुत सूक्ष्मरीति से विचार किया है' परन्तु मन्य के मढ़ जाने के भय से उन सब का विस्तारपूर्वक वर्णन महां नहीं लिख सकते हैं किन्तु आवश्यक जान कर उन का सार मात्र सक्षेप से यहां दिखाते हैं
न्यूनाधिक तथा सम विपम मभाव के अनुसार बठराभि के चार भेव माने गये हैंमन्यामि', तीक्ष्णामि, विपमामि और समाभि ।
इन चारों के सिवाय एक अतितीक्ष्णामि भी मानी गई है जिस को भस्मक रोग कहते हैं।
इन सब भमियों का स्वरूप इस प्रकार जानना चाहिये कि मन्दामियाले पुरुष ૐ मोड़ा स्वामा हुआ भोजन सो पच जाता है परन्तु किञ्चित् मी अधिक स्वामा हुमा भोजन कभी नहीं पचता है, तीक्ष्णामिवाले पुरुष का अधिक भोजन भी अच्छे प्रकार से प सकता है, विपमामियाले पुरुष का खाया हुआ मोबन कभी हो अच्छे प्रकार से पत्र माता है और कभी अच्छे प्रकार से नहीं पता है, इस पुरुष की भमि का बल भनियमित होता है इसलिये इस के माय अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं, समामिगाळे पुरुष का किया हुआ भोजन ठीक समय पर ठीक रीति से पचगाता है तथा इस का शरीर भी नीरोम रहता है तथा वीक्ष्माभिगाला ( भस्मकरोगनाला ) पुरुष जो कुछ स्लाता है यह श्रीमदी १-क्योकि भजी से और जयमि के विकारों से परस्पर में बडा सम्बंध है या कहना चाहिने कि- अजीर्ण पटरामिकेवर ही है 1-चीपाई - - सम्म माय मोजन याने मिनिअम पर सेवा ॥ मन्द श्रमिमामो मस्प हु भाषिक मावरा हे बस नति गर्न वा घारै
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पर्ष अन का पुपुर पहर में भाख चिम भगनि के मे है लिए प्रमाण मावरा अमीप राम अपनी बहू नाम बानो राम अम्मी के बोरे म अनि जान हो
तो हूँ मोह पर बुद्ध पावे ॥ १ ॥ श्रीस जठर भवि भारी बेस १० वा कफ प्रथम परिचय सो पनि भाग प्राण सुख देने ४ पिप्रधान तीन गुना ॥ ५० नारा उदर रहा६॥ ॥ कबक मक सायक अति वा या बस मधू ॥
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चार अपने में भेजा पूर जन्म पुसोई गय पम्यान व अति भोजन से हिन्ा पुग्न श्री क्षेत्र की योगपिठ बापू या ॥१४
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अमि बाबू कर रही अपक भ्रम भरि १५० जादो भयाचा प
भोजन यम जर्मन कर दी मोदी१७