________________
चतुर्थ अध्याय ॥
५०९ खाया हुआ अन्न पचता है, परन्तु हा कभी २ ऐसा भी होता है कि इस रोग से युक्त पुरुष को अधिक भूख लगी हुई मालूम होती है यहातक कि खाने के बाद भी भूख ही मालम पड़ती है तथा खुराक के पेट में पहुंचने पर भी अंग गलता ही जाता है, शरीर में सदा आलस्य बना रहता है, कभी २ रोगी को ऐसा दुःख मालूम पड़ता है कि वह यह विचारता है कि मै आत्मघात (आत्महत्या) कर के मर जाऊँ, अर्थात् उस के हृदय में अनेक बुरे विचार उत्पन्न होने लगते है।
कारण-मसालेदार खुराक, घी वा तेल से तर ( भीगा हुआ) पक्वान्न ( पकमान) वा तरकारी, अधिक मेवा, अचार, तेज़ और खट्टी चीजें, बहुत दिनोतक उपवास करके पशु के समान खाने का अभ्यास, बहुत चाय का अभ्यास, जल पीकर पेट को फुला देना (अधिक जल का पी लेना), भोजन कर के शीघ्र ही अधिक पानी पीने का अभ्यास और गर्मागर्म ( अति गर्म ) चाय तथा काफी के पीने का अभ्यास, ये सब बादी और अजीर्ण को बुलानेवाले दूत हैं।
इस के सिवाय-मद्य, ताडी, खाने की तमाखू, पीने की तमाखू, सूंघने की तमाखू, भाग, अफीम और गाजा, इत्यादि विषैले पदार्थों के सेवन से मनुष्य की होजरी खराब हो जाती है', वीर्य का अधिक क्षय, व्यभिचार, सुज़ाख और गर्मी आदि कारणों से मनुप्य की आंतें नरम और शक्तिहीन (नाताकत ) पड़ जाती हैं, निर्घनावस्था में किसी उद्यम के न होने से तथा जाति और सासारिक ( दुनिया की) प्रथा ( रिवाज ) के कारण औसर
और विवाह आदि में व्यर्थ खर्च के द्वारा धन का अधिक नाश होने से उत्पन्न हुई चिन्ता से अनि मन्द हो जाती है तथा अजीर्ण हो जाता है, इत्यादि अनेक कारण अग्नि की मन्दता तथा अजीर्ण के है।
चिकित्सा-१-इस रोग की अधिक लम्बी चौड़ी चिकित्सा का लिखना व्यर्थ है, क्योंकि इस की सर्वोपरि (सब से ऊपर अर्थात् सब से अच्छी) चिकित्सा यही है कि ऊपर कहे हुए कारणो से बचना चाहिये तथा साधारण हलकी खुराक खाना चाहिये, शक्ति के अनुसार व्यायाम (कसरत ) करना चाहिये तथा सामान्यतया शरीर की आरोग्यता को बढ़ानेवाली साधारण दवाइयों का सेवन करना चाहिये, बस इन उपायों के सिवाय और कोई भी ऐसी चतुराई नहीं है कि जिस से इस रोग से बचाव हो सके।
१-क्योंकि इस रोग का कष्ट रोगी को अत्यन्त पीडित करता है ।
२-बहुत से लोग यह समझते हैं कि मद्य और भाग आदि के पीने से तथा तमाखू आदि के सेवन से (साने पीने आदि के द्वारा) भूस खूव लगती है, अन्न अच्छे प्रकार से खाया जाता है, पाचनशक्ति वढ जाती है तथा शरीर में शक्ति आती है इत्यादि, सो यह उन की भूल है, क्योंकि परिणाम में इन सव पदार्थी से आमाशय और जठराग्नि मे विकार हो कर बहुत खरावी होती है अर्थात् कठिन अजीर्ण होकर अनेक रोगों को उत्पन्न कर देता है, इस लिये उक्त विचार से इन पदार्थों का व्यसनी कभी नहीं बनना चाहिये ॥