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चतुर्थ अध्याय ।। न आ जावे तब तक उसे धूप, गर्मी, वरसात तथा ठढ में नहीं जाने देना चाहिये तथा उसे थोड़ा और पथ्य आहार देना चाहिये तथा रोग के मिटने के पीछे भी बहुत दिनों तक ठढे इलाज तथा ठंढे खान पान देते रहना चाहिये ।
रोगी को जो दवा के पदार्थ दिये जाते है उन के ऊपर खुराक में दूध के देने से वे बहुत फायदा करते है ॥
ओरी (माझल्स) का वर्णन ॥ लक्षणयह रोग प्रायः बच्चो के होता है तथा यह ( ओरी) एक बार निकलने के वाद फिर नहीं निकलती है, शरीर में इस के विप के प्रविष्ट (दाखिल) होने के बाद यह दश वा पन्द्रह दिन के भीतर प्रकट होती हैं तथा कर्फ से इस का प्रारंभ होता है अर्थात् ऑख और नाक झरने लगते है। ___ इस में-कफ, छीक, ज्वर, प्यास और वेचैनी होती है, आवाज़ गहरी हो जाती है, गला आ जाता है, श्वास जल्दी चलता है, ज्वर सख्त आता है, शिर में दर्द बहुत होता है, दस्त वहुत होते हैं, वफारा बहुत होता है। ___ इस ज्वर में चमड़ी का रंग दूसरी तरह का ही बन जाता है, ज्वर आदि चिह्नों के दीखने के बाद तीन चार दिन पीछे ओरी दिखाई देती है, इस का फुनसी के समान छोटा और गोल दाना होता है, पहिले ललाट (मस्तक ) तथा मुख पर दाना निकलता है और पीछे सव शरीर पर फैलता है।
जिस प्रकार शीतला में दानो के दिखाई देने के पीछे ज्वर मन्द पड़ जाता है उस प्रकार इस में नहीं होता है तथा शीतला के समान दाने के परिमाण के अनुसार इस में ज्वर का वेग भी नहीं होता है', ओरी सातवें दिन मुरझाने लगती है, ज्वर कम हो जाता है, चमड़ी की ऊपर की खोल उतर कर खाज (खुजली) बहुत चलती है। १-जैसे गुलकन्द आदि पदार्थ ।
२-यह भी शीतला रोग का ही एक भेद है अर्थात् शीतला सात प्रकार की मानी गई है उन्ही सात प्रकारों में से एक यह प्रकार है ॥ __ ३-क्योंकि विप शरीर में प्रविष्ट होकर दश वा पन्द्रह दिन में अपना असर शरीर पर कर देता है तव ही इस रोग का प्रादुर्भाव (उत्पत्ति) होता है ।
४-कफ से अर्थात् प्रतिश्याय ( सरेकमा वा जुखाम) से इस का प्रारम्भ होता है, तात्पर्य यह है किइस के उत्पन्न होने के पूर्व प्रतिश्याय होता है अर्थात् नाक और आँस में से पानी झरने लगता है ।। ५-गहरी अर्थात् गम्भीर वा भारी॥ ६-गला आ जाता है अर्थात् गला कुछ पक सा जाता है तथा उस मे छाले से पड़ जाते है । ७-अर्थात् चमडी का रंग पलट जाता है। 4-अर्थात् इस मै दानों के दिखाई देने के पीछे भी ज्वर मन्द नहीं पड़ता है। ९-अर्थात् शीतला मे तो जैसे अधिक परिमाण के दाने होते हैं वैसा ही ज्वर का वेग अधिक होता है परन्तु इस में वह वात नहीं होती है।