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चतुर्थ अध्याय ॥
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तथा भात पथ्य है, पिचज्वर के लिये भी यही पय्य समझना चाहिये, परन्तु पित्तज्वरवाले को उठा कर तथा थोड़ी सी मिश्री मिलाकर लेना चाहिये ।
यदि दो दोष तथा त्रिदोष मालूम हो तो उस में केवल मूंग की दाल का पानी ही पथ्य है । २ - मुंग का ओसामण, भात, अथवा साबूदाना, ये सब वस्तुयें सामान्यतया ज्वर में पथ्य है, अर्थात् ज्वर समय में निर्भय खुराक है ।
इस के अतिरिक्त - यह भी स्मरण रखना चाहिये कि - जहा दूध को पच्य लिखा है वहा दूध के साथ साबूदाना समझना चाहिये अर्थात् दूध के साथ साबूदाना देना चाहिये, अथवा साबूदाना को जल में पका कर तथा उस में दूध मिला कर देना चाहिये । ३- प्रायः सब ही ज्वरों में प्रथम चिकित्मा लङ्घन है, अर्थात् ज्वर की दशा में लघन परम हितकारक है और खास कर कफ तथा आम के ज्वर में, पित्त के ज्वर में, दो २ दोषो से उत्पन्न हुए ज्वर में तथा त्रिदोपजन्यज्वर में तो लङ्घन परम लाभदायक होता 'है', यदि रोगी से सर्वथा निराहार न रहा जावे तो एक समय हलका आहार करना चाहिये, अथवा केवल मूगका ओसामण ( पानी ) पीना चाहिये, क्योंकि ऐसा करना भी लघन के समान ही लाभदायक है ।
हा केवल वातज्वर, जीर्णज्वर, आगन्तुकज्वर और क्षय तथा यकृत् के वरम से उत्पन्न हुए ज्वर में विलकुल निराहाररूप लघन नहीं करना चाहिये, क्योकि इन ज्वरो में निराहाररूप लघन करने से उलटी हानि होती है ।
४- तरुणज्वर में अर्थात् १२ दिन तक दूध तथा परन्तु क्षय, शोथ, राजरोग और उरःक्षत के ज्वर में, और आगन्तुकज्वर में दूध हितकारक है, इस में भी के पीछे इक्कीस दिन के बाद तो दूध अमृत के समान है ।
घी का सेवन विप के समान है, यकृत् के ज्वर में, जीर्णज्वर में जीर्णज्वर में कफ के क्षीण होने
५ - जो ज्वरवाला रोगी शरीर में दुर्बल हो, जिस के शरीरका कफ कम पड़ गया हो, जिस को जीर्णज्वर की तकलीफ हो, जिस को दस्त का वद्धकोष्ठ हो, जिस का शरीर रूखा हो, जिस को पित्त वा वायु का ज्वर हो तथा जिस को प्यास और दाह की तकलीफ हो उस रोगी को भी ज्वर में दूध पथ्य होता है ।
१–क्योंकि लघन के करने से दोपों का पाचन हो जाता है ॥
२ - तरुण ज्वर में दूध और घी आदि स्निग्ध पदार्थों के सेवन से मूर्छा, वमन, मद और अरुचि आदि दूसरे रोग उत्पन्न हो जाते 11
३- शरीर मे दुर्बल रोगी की दूध पीने से शक्ति बनी रहती है, जिसके शरीर का कफ कम पड गया हो उस के दूध पान से कफ की वृद्धि होकर दोपों की समता के द्वारा उसे शीघ्र आरोग्यता प्राप्त होती है, जीर्णज्वर मे दूध पीने से शक्ति का क्षय न होने के कारण ज्वर की प्रबलता नहीं होती है, बद्धकोष्ठवाले को दूध के पीने से दस्त साफ आता रहता है, रूक्ष शरीरवाले के शरीर में दुग्धपान से रूक्षता मिट कर स्निग्धता ( चिकनाहट ) आती है, वातपित्तज्वर में दुग्धपान से उक्त दोपों की शान्ति हो कर ज्वर नष्ट हो जाता है तथा जिस रोगी को प्यास और दाह हो उस के भी उक्त विकार दूध के पीने से मिट जाते है ॥