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मैनसम्प्रदायश्चिया॥ अमवा-मिमी शक कर पिचपापरे का हिम पीना चाहिये । भगवा-आँवल्म, दास भौर मिभी न पानी, इन का सेवन करना पाहिये ।
अथवा दास, चन्दन, पाठा, मोग, मोझेठी और पनियो, इन सब पीजों ने अपना इन में से दो घीन मिले उस को भिगा कर तवा पीस कर उस का पानी पीना चाहिये । ___ अभना-मोर बसे हुए पार पदवे, मुनी हुई पीपल, भुना हुआ मीरा, बनी हुई मारिया की चोटी, मलाया हुमा रेशम का कूचा वा कपड़ा, पोदीना और कमगहे (पन्नोडी) मन्दर की हरियाई (गिरी), इन सब को पीस कर सहप में, मनार के शर्यत में, ममगा मिभी की चासनी में वमन (उम्टी) के होते ही चाटना चाहिये तमा फिर भी पण्टे पर भर के पाद पाटना पाहिये, इस से त्रिवोष की भी नमन तमा म्वनी क्व हो गती है।
अभवा-भुषा की दोनों नसों को खून सीप कर गांपना पाहिये ।
भयना-नारियर की बोटी, इम्दी, काली मिर्च, उपद और मोर के पन्वे सपूमपान करना पाहिये।
मषवा-नीम की मीतरी छास का पानी मिमी रान कर पीना चाहिये ।
ज्पर म दाई-इस में यदि भीतर वाह हो सो प्राय मह पिपिस्सा हिसकारको जो कि बमन के लिये ठामदायक है, परन्तु यदि बापर वाह होता हो तो करे पापम
पोरन में पिसा हुआ चन्दन एक पास तथा पिसी हुई सोठ एक रची छेनी चाहिम, इस में थोड़ा सा शहद मिला कर पाटना पाहिये समा पानी में मिमकर पीना पाहिये ।
अपमा चन्दन, सोंठ, बाण और निमक, इन काम करना चाहिये । अपवा-मगम पर मुस्तानी मिट्टी न भर मरना चाहिये ।
यदि पगरी समा रमेमियों में बार रोता हो तो उधम साफ पैदेवाली श्रम (से) की कटोरी मेकर धीरे २ फेरवे राना पाहिये, ऐसा करने से वार भवस्य शान्त हो जायेगा।
उपर में पध्य अर्थात् हितकारी फर्सन्॥ १-परिभम के काम, छपन (उपवास) भौर गायु मे परे हुए मर में-दस के साथ भाव साना पप्प (हिवारक), कफ पर में मूंग की दाट का पानी
-सरसेन भैरण में प्राय भी पिसाप रिमाका पोका प्रम अम्पामरों में परन्तु इस में इस बात प्रभार समरपना परिये वो ना भर पर भया मागानसम्म उसे भी मारना चाहिये। १-पप भणासमरे 1-पून
भारी करने से एक प्रपा प्रेमि पदिरा भार पर निशाना
समें भगा लिप रभसामा परि मत 4म से पुरे भारपिस भी 30 मन नदवाव प
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