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चतुर्थ अध्याय ॥
४८७ ऐसे फूट कर निकलनेवाले रोग कही तो एकदम ही फूट कर निकलते है और कहीं कुछ विशेष विलम्ब से फूटते है', इन रोगों का मुख्य कारण एक प्रकार का ज़हर (पाइज़न ) ही होता है और यह विशेष चेपी है इस लिये चारों ओर फैल जाता है अर्थात् बहुत से आदमियों के शरीरो में घुस कर बडी हानि करता है, इस के फैलने के समय में भी कुछ आदमियों के शरीर को यह रोग लगता है तथा कुछ आदमियो के शरीर को नहीं लगता है, इस का क्या कारण है इस बात का निर्णय ठीक रीति से अभीतक कुछ भी नहीं हुआ है परन्तु अनुमान ऐसा होता है कि कुछ लोगो के शरीर के कन्धेज विशेष के होने से तथा आहार विहार से प्राप्त हुई निकृष्ट (खराब ) स्थितिविशेष के द्वारा उन के शरीर के दोप ऐसे चेपी रोगो के परमाणुओं को शीघ्र ही ग्रहण कर लेते है तथा कुछ लोगों के शरीर के वन्धेज विशेप ढग के होने से तथा आहार विहार के द्वारा प्राप्त हुई उत्कृष्ट ( उत्तम ) स्थिति विशेष के द्वारा उन के शरीर के तत्त्वोपर ऐसे रोगों के चेपी तत्त्व शीघ्र असर नहीं कर सकते हैं, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि-एक ही स्थान में तथा एक ही घर में किसी को यह रोग लग जाता है और किसी को नहीं लगता है, इस का कारण केवल वही है जो कि अभी ऊपर लिख चुके है।
लक्षण-फूट कर निकलनेवाले रोगों में से शीतला आदि रोगों में प्रथम तो यह विशेषता है कि ये रोग प्रायः बच्चों के ही होते है परन्तु कभी २ ये रोग किसी २ बड़ी अवस्थावाले के भी होते हुए देखे जाते हैं, इन में दूसरी विशेषता यह है कि जिस के शरीर में ये रोम एक बार हो जाते हैं उस के फिर ये रोग प्रायः नहीं होते है, इन में तीसरी विशेषता यह है कि जिस बच्चे के शीतला का चेप लगा दिया गया हो अर्थात् शीतला खुदवा डाली हो (टीका लगवा दिया हो) उस को प्रायः यह रोग फिर नहीं होता है, यदि किसी २ के होता भी है तो थोडा अर्थात् बहुत नरम (मन्द) होता है
१-तात्पर्य यह है कि जव रोग के कारण का पूरा असर शरीर पर हो जाता है तव ही रोग उत्पन्न हो जाता है ॥
२-अर्थात् स्पर्श से अथवा हवा के द्वारा उड कर लगनेवाला है ।
३-सात्पर्य यह है कि प्रत्येक कार्य के लिये देश काल और प्रकृति आदि के सम्बन्ध से अनेक साधनों की आवश्यकता होती है, इस लिये जिन लोगों का शरीर उक्त रोगों के कारणों का आश्रयणीय (आश्रय लेने योग्य) होता है उन के शरीर में चेपी रोग प्रकट हो जाता है तथा जिन का शरीर उक्त सम्बध से रोगों के कारणों का आश्रयणीय नहीं होता है उन के शरीर में चेपी रोग के परमाणुओं का असर नहीं होता है।