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मैनसम्प्रदायश्चिक्षा ||
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इसी प्रकार इन के मित्र २ देशों में प्रसिद्ध उबर है, इस कवर में प्राय पिचर के सब
भनेक नाम हैं, संस्कृत में इसका नाम मन् क्षण होते हैं ।
विचार कर देखा जाये तो मे ( फूट कर निकलनेवाले ) ज्वर अधिक मगानक होते हैं अर्थात् इन की यदि ठीक रीति से चिकित्सा न की जाये तो ये शीघ्र ही प्राणांतक हो जाते हैं परन्तु बड़े अफसोस का विषय है कि लोग इन की मयंकरता को न समय कर मनमानी चिकिस्सा कर अन्स में प्राणों से हाथ पो बैठते हैं।
मारवाड़ देश की ओर जब इधि उठा कर देखा जाये तो विदित होता है किवहां के भविधा देवी के उपासकों ने इस ज्वर की चिकित्सा का अधिकार मूर्ख रण्डा ( विधवाओं) को सौंप रक्खा है, जो कि (रेडायें ) डाकिनी रूप हो कर इस की मान पिचगिरोषी चिकित्सा करती है' 'भर्भाद इस ज्वर में मस्यन्व गर्म लौंग सोठ और प्राणी दिलाती हैं, इसका परिणाम यह होता है कि इस चिकित्सा के होने से सौ में से प्राम नम्बे मादमी गर्मी के दिनों में मरते हैं, इस बात को इम ने वहां लर्म देखा है पौर सौ में से दक्ष भादमी भी जो बसे हैं ने भी किसी कारण से ही बचते हैं सो भी अत्यन्त कष्ट पाकर बचते हैं किन्तु उन के लिये भी परिणाम यह होता है कि वे जन्म भर अत्यन्त कष्टकारक उस गर्मी का भोग भोगते इस किये इस बात पर मारवाड़ के निवासियों को अवश्य ही ध्यान देना चाहिये ।
हैं,
मोती भगवा सरसों के दानों के मुख्यतया ज्वर का ही उपवन
इन रोगों में यद्यपि मसूर के दानों के समान तथा समान शरीर पर फुनसियां निकती है सभापि इन में दोता है इसलिये यहां हमने ज्वर के प्रकरण में इनका समावेश किया है ।
मेद ( प्रकार ) फूट कर निकलनेवाले ज्यरों के बहुत से मेद (मकार ) हैं, उन में से धीता, मोरी और मचपड़ा ( इस को मारवाड में माया काका कहते हैं) भावि मुख्म है, इन के सिवाय मोतीझरा, रंगीमा, विसर्प, हैजा और द्वेग यादि सब भयंकर ज्वरों का भी समावेश इन्हीं में होता है ।
कारण- नाना प्रकार के उबरों का कारण जितना घरीर के साथ सम्बन्ध रखता है उस की अपेक्षा बाहर की दवा से विशेष सम्बन्ध रखता है ।
१र में पित्तविशेषी
वर्षमा निषेव किया गया है अत्र में पित्तविरोधी कभी करनी चाहिये क्योंकि ऐसा करने से अनेक मरे भी उपाय अपने हो दवा की मरोपियों में समा जाती है और जब
१-क्योंकि
श्रीम बहती है तब उन के शरीर में दिन वर्मा जी का सहन नहीं होता है भी आखिरकार मर ही ३-अ
वे
जारी दवा से विशेष का है