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चतुर्थ अध्याय ॥
१० - वातज्वर में जो काढ़ा दूसरे नम्बर में लिखा है उसे लेना चाहिये । ११ - गिलोय, सोंठ और पीपरामूल, इन का काढ़ा पीना चाहिये ।
१२ - भूरीगणी, चिरायता, कुटकी, सोठ, गिलोय और एरण्ड की जड़, इन का काढ़ा पीना चाहिये ।
१३ - दाख, धमासा और असे का पत्ता, इन का काढ़ा पीना चाहिये ।
१४ - चिरायता, बाला, कुटकी, गिलोय और नागरमोथा, इन का काढ़ा पीना चाहिये । १५ - ऊपर कहे हुए कादो में से किसी एक काथ ( कादो ) को विधिपूर्व के तैयार कर थोडे दिन तक लगातार दोनों समय पीना चाहिये, ऐसा करने से दोष का पाचन और शमन (शान्ति) हो कर ज्वर उतर जाता है | सन्निपातज्वर का वर्णन ॥
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१ - अर्थात् देवदार्वादि क्वाथ (देखो वातज्वर की चिकित्सा में दूसरी सख्या ) ॥
२- यह काढा दीपन और पाचन भी है |
३- काढे की विधि पहिले तेरहवे प्रकरण में लिख चुके है ॥
तीनों दोपों के एक साथ कुपित होने को सन्निपात वा त्रिदोष प्रायः सब रोगो की अन्तिम ( आखिरी ) अवस्था ( हालत ) में हुआ दशा ज्वर में जब होती है तब उस ज्वर को सन्निपातज्वर कहते है, दोष की प्रबलता तथा दो दोषो की न्यूनता से तथा किसी में दो दोषों की एक दोष की न्यूनता से इस ज्वर के वैद्यकशास्त्र में एकोल्वणादि ५२ भेर्द तथा इस के तेरह दूसरे नाम भी रख कर इस का वर्णन किया है ।
यह निश्चय ही समझना चाहिये कि - यह सन्निपात मौत के विना नहीं होता है चाहे मनुष्य वोलता चालता तथा खाता पीता ही क्यों न हो ।
यह भी स्मरण रखना चाहिये कि - सन्निपात को जाननेवाला अनुभवी वैद्य ही पहिचान सकता है,
निदान और कालज्ञान को पूर्णतया किन्तु मूर्ख वैद्यो को तो अन्तदशा
तक में भी इस का पहिचानना कठिन है, हा यह निश्चय है कि- सन्निपात के वा त्रिदोप के साधारण लक्षणों को विद्वान् वैद्य तथा डाक्टर लोग सहज में जान सकते है ।
कहते है, यह दशा करती है, यह किसी में एक प्रबलता और दिखलाये है
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४-अर्थात् अपक्क ( कच्चे ) दोप का पाचन और बढे हुए दोप का शमन होकर ज्वर उतर जाता है ॥ ५- तात्पर्य यह है कि- सन्निपात की दशा मे दोपों का सँभालना अति कठिन क्या किन्तु असाध्य सा हो जाता है, बस वही रोग की वा यों समझिये कि प्राणी की अन्तिम ( आखिरी ) अवस्था होती है, अर्थात् इस संसार से विदा होने का समय समीप ही आजाता है ॥
६-उन सव ५२ भेदों का तथा तेरह नामों का वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देख लेना चाहिये, यहा पर अनावश्यक समझकर उन का वर्णन नहीं किया गया है ॥
७-तात्पर्य यह है कि तीनों दोषों के लक्षणों को देख कर सन्निपात की सत्ता का जान के लिये कुछ कठिन बात नहीं हैं परन्तु सन्निपात के निदान ( मूलकारण ) तथा दोषों के निश्चय करना पूर्ण अनुभवी वैद्य का ही कार्य है ॥
लेना योग्य वैद्यों अशाशीभाव का