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चतुर्थ अध्याय ॥
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चिकित्सा -- १ - विष से तथा औषधि के गन्ध से उत्पन्न हुए ज्वर में - पित्तशमन, कर्त्ता ( पित्त को शान्त करनेवाला) औषध लेना चाहिये', अर्थात् तज, तमालपत्र, इलायची, नागकेशर, कबाबचीनी, अगर, केशर और लौंग इन में से सब वा थोड़े सुगन्धित पदार्थ लेकर तथा उनका क्वाथ ( काढा ) बना कर पीना चाहिये ।
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२ - काम से उत्पन्न हुए ज्वर में - बाला, कमल, चन्दन, नेत्रवाला, तज, धनियाँ तथा जटामांसी आदि शीतल पदार्थों की उकाली, ठंढा लेप तथा इच्छित वस्तु की प्राप्ति आदि उपाय करने चाहिये ।
३ - क्रोध, भय और शोक आदि मानसिक ( मनःसम्बन्धी ) विकारों से उत्पन्न हुए ज्वरों में उन के कारणों को ( क्रोध, भय और शोक आदिको ) दूर करने चाहियें, रोगी को धैर्य ( दिलासा ) देना चाहिये, इच्छित वस्तु की प्राप्ति करानी चाहिये, यह ज्वर पित्त को शान्त करनेवाले शीतल उपचार, आहार और विहार आदि से मिट जाता है ।
४ - चोट, श्रम, मार्गजन्य श्रान्ति ( रास्ते में चलने से उत्पन्न हुई थकावट ) और गिर जाना इत्यादि कारणों से उत्पन्न हुए ज्वरों में- पहिले दूध और भात खाने को देना चाहिये तथा मार्गजन्य श्रान्ति से उत्पन्न हुए ज्वर में तेल की मालिश करवानी चाहिये तथा सुखपूर्वक ( आराम के साथ ) नींद लेनी चाहिये ।
५- आगन्तुक ज्वरवाले को लंघन नहीं करना चाहिये किन्तु स्निग्ध ( चिकना ), तर तथा पित्तशामक ( पित्त को शान्त करनेवाला ) शीतल भोजन करना चाहिये और मन को शान्त रखना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से ज्वर नरम (मन्द) पड़ कर उतर जाता है ।
६-आगन्तुकज्वर वाले को वारंवार सन्तोष देना तथा उस के प्रिय पदार्थों की प्राप्ति कराना अति लाभदायक होता है, इस लिये इस बात का अवश्य खयाल रखना चाहिये ॥ विषमज्वर का वर्णन ॥
कारण - किसी समय में आये हुए ज्वर के दोषों का शास्त्र की रीति के विना किसी प्रकार निवारण करने के पीछे, अथवा किसी ओषधि से ज्वर को दबा देने से जब उस
१- इन दोनों (विपजन्य तथा ओषधिगन्धजन्य ) ज्वरों में- पित्त प्रकुपित हो जाता है इस लिये पित्त को शान्त करनेवाली ओपधि के लेने से पित्त शान्त हो कर ज्वर शीघ्र ही उतर जाता है |
२- वाग्भट्ट ने लिखा है कि "शुद्धवातक्षयागन्तुजीर्णज्वरिषु लङ्घनम्" नेष्यते इति शेष, अर्थात् शुद्ध वात में (केवल वातजन्य रोग मे ), क्षयजन्य (क्षयसे उत्पन्न हुए) ज्वर में, आगन्तुकज्वर मे तथा जीर्णज्वर मे लघन नहीं करना चाहिये, वस यही सम्मति प्राय सब आचार्यों की है ॥
३- इस ज्वर का सम्बध प्राय मन के साथ होता है इसी लिये मन को सन्तोष प्राप्त होने से तथा अभीष्ट वस्तु के मिलने से मन की शान्तिद्वारा यह ज्वर उतर जाता है ॥
४ - जैसे विनाइन आदि से ||