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चतुर्थ अध्याय ॥
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तक तथा किसी समय उस से भी आगे अर्थात् १०५ और १०७ तक भी बढ़ जाती है, इस प्रकार आठ दश घंटे तक अधिक वेगयुक्त होकर पीछे कुछ नरम ( मन्द ) पड़ जाता है तथा थोड़ा २ पसीना आता है, ज्वर की गर्मी के अधिक होने से इस के साथ खांसी, लीवर का वरम (शोथ ), पाचनक्रिया में अव्यवस्था ( गडबड़ ) अतीसार और मरोड़ा आदि उपद्रव भी हो जाते है ।
इस ज्वर में प्रायः सातवें दशवें वा बारहवें दिने तन्द्रा ( मीट ) अथवा सन्निपात के लक्षण दीखने लगते हैं तथा इस ज्वर की उचित चिकित्सा न होने से यह १२ से २४ दिन तक ठहर जाता है ।
चिकित्सा — यह सन्ततज्वर ( रिमिटेंट फीवर) बहुत ही भयंकर होता है इस लिये यदि गृहजनों को इस का ठीक परिज्ञान न हो सके तो कुशल वैद्य वा डाक्टर से इस की परीक्षा करा के चिकित्सा करानी चाहिये, क्यों कि सख्त और भयंकर बुखार में रोगी ७ से १२ दिन के अन्दर मर जाता है और जब रोग अधिकदिन तक ठहर जाता है तो गम्भीर रूप पकड़ लेता है अर्थात् पीछे उसका मिटना अति दुःसाध्य ( कठिन ) हो जाता है, सब से प्रथम इस बुखार की मुख्य चिकित्सा यही है कि - बुखार की टेम्परेचर (गर्मी) को जैसे हो सके वैसे कम करना चाहिये, क्यों कि ऐसा न करने से एकदम खून का जोश चढ़कर मगज में शोथ हो जाता है तथा तन्द्रा और त्रिदोष हो जाता है इस लिये गर्मी को कम करने के लिये यथाशक्य शीघ्र ही उपाय करना चाहिये, इस के अतिरिक्त जो देशी चिकित्सा पहिले लिख चुके है वह करनी चाहिये ||
जीर्णज्वर का वर्णन ॥
कारण- जीर्णज्वर किसी विशेष कारण से उत्पन्न हुआ कोई नया बुखार नहीं है किन्तु नया बुखार नरम ( मन्द ) पड़ने के पीछे जो कुछ दिनों के बाद अर्थात् बारह दिन के बाद मन्दवेग से शरीर में रहता है उस को जीर्णज्वर कहते हैं, यह ज्वर ज्यों
१- तात्पर्य यह है कि -वात के प्रकोप म सातवें दिन, पित्त के प्रकोप में दशवें दिन तथा कफ के प्रकोप मे वारहवें दिन तन्द्रा होती है अथवा पूर्व लिखे अनुसार एक दोष कुपित हुआ दूसरे दोषों को भी कुपित कर देता है इसलिये सन्निपात के लक्षण दीखने लगते हैं ॥
२ - तात्पर्य यह है कि दोषों की प्रवलता के अनुसार इस की १२ से २४ दिन तक स्थिति रहती है ॥ ३ - अर्थात् गर्मी को यथाशक्य उपायों द्वारा बढने नहीं देना चाहिये ॥
४- तात्पर्य यह है कि बारह दिन के बाद तथा तीनों दोषों के द्विगुण ( दुगुने ) दिनों के ( तेरह द्विगुण छब्बीस) अर्थात् छब्बीस दिनों के उपरान्त जो ज्वर शरीर में मन्दवेग से रहता है उस को जीर्णज्वर कहते हैं, परन्तु कोई आचार्य यह कहते हैं कि २१ दिन के उपरान्त मन्दवेग से रहनेवाला ज्वर जीर्णज्वर होता है ॥