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भेनसम्प्रदायशिक्षा । चिकित्सा पहिले सेक्षेप से लिख चुके हैं मह मझेरिया की विपैली इना में से उपक होता। उषा यह ज्वर विषमज्जर के दूसरे मेवों की अपेक्षा अधिक भयङ्कर है'।
लक्षण यह ज्वर सात दश वा मारह दिन तक एक सदक्ष (एकसरीसा) भाषा करता है मर्मात् किसी समय भी नहीं उतरता है, यह ज्वर पाय दीनों योपो के मस्त होने से आता है, इस न्वर से प्रारंभ में पाचनक्रिया फी मध्यवसा (गरकर ), NP स्ता (बेचैनी), सिनता (पित की दीनवा) तथा चिर में दर्द का होना मावि मार मालम रोते हैं ठंड की पमफारी इसनी मोड़ी मासी है फिर पढ़ने की सबर तक ना पड़ती है और शरीर में पक्वम गर्मी भर जाती है, इसके सिमाम-इस घर में पता में वाह, नमन (उम्टी), शिर में दर्द, नींव का न माना तमा सन्त्रा ( मीट) का सन आदि म्यम मी पाये जाते हैं।
मन्तगी (अन्तरिया) नुसार से इस मुसार में इसना भेव है कि-मन्तगी मर में वो ज्वर का पढ़ना और उतरना स्पष्ट मासम देता है परन्तु इस में नर का पार
और उसरना मास नहीं देता है, क्यो कि मन्सपेगी ज्जर तो किसी समम विमान उतर पाता है और यह ज्वर किसी समय भी नहीं उतरता है किन्तु न्यूनाधिक ( ज्यादा) होता रहता है अर्थात् किसी समय कुछ कम सभा किसी समय मस्पन्न । कम हो जाता है, इस लिये पर भी नहीं मालम परता है कि-कम भषिक हुआ का कम हुमा, यह बात प्रकटतया धर्मामेटर से ठीक मासूम होती है, तात्पर्य या दि-इस ज्वर की दो सिति होती है-मिन में से पहिली स्थिति में भोरे २ अन्तर ऊपर ही उपर ज्यर का बहाव उतार होता है और पीछे दूसरी स्थिति में स्वर की मरत (भामद) भनुमान भाउ २ पण्टे तक रहती है, इस समय पमरी महत गर्म राखी नाही पाहत अस्वी परती है, भासोपास पहुत पेग से पलों है और मन को विकल्य मात होती है अर्थात् मन को पन नहीं मिमता, ज्वर की गर्मी किसी समय १०१
1-पदिने मिरा रेशिमीरा पण हा श्रीमासे के पर रसम में से गलम ली।
२-वारपर्व पहरेक मरवा रिपम ना पर प्रदेश भाम में मनर मतावर भर समर स्पा करी रेस मये यावर भपि मम ऐप है।
- पमामेर रे पापे से पमा म्यूमता (समी) तप मपिया (मारी) सामान ऐसीबसी से गरमी स्पूनवा तमा भपिम्मा माइल र मेसी अदि माम म्भव भर म्यूमा मासिका परभषि प्रविषय हो गाव का पर पुसिरप में समीती सवी पर्ममम ममाने की पRD AT
मातम पल्मा वा भाव मेय भाप को मारी परब तेरठ मोसमराम रमन
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